Re Kabira 046 - नज़र


-o Re Kabira 046 o--



नज़र 

मुश्किलों की तो फ़ितरत है, आती ही हैं नामुनासिब वक़्त पर
अरे रफ़ीक वक़्त गलत नहीं, थिरका भी है कभी तुम्हारी नज़्मों पर 

होठों पर हो वो ग़ज़ल, जो ले जाती थी तुम्हें रंगो संग आसमाँ पर
मुसीबतें नहीं हैं ये असल, वो ले रही इम्तेहाँ ज़माने संग ज़मीं पर

डरते है हम अक्सर ये सोच कर, नज़र लग गई ख़ुशियों पर 
बोले रे कबीरा क्या कभी लगी, मेरे ख़ुदा की नज़र बंदे पर



आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
@OReKabira


--o Re Kabira 046 o--

Most Loved >>>

क्यों न? - Why Not? - Re Kabira 102

Re Kabira - सर्वे भवन्तु सुखिनः (Sarve Bhavantu Sukhinah)

लिखते रहो Keep Writing - Re Kabira 101

Re Kabira 050 - मैंने बहुत से दोस्त इकट्ठे किए हैं

Re kabira 085 - चुरा ले गए

कहाँ है पवन? - Re Kabira 099

बुलन्द दरवाज़ा - Re Kabira 100

पल - Moment - Re Kabira 098

तमाशा बन गया - Re Kabira 089

एक बूँद की औकात - Re Kabira 094