Re Kabira 0066 - स्याही की व्यथा

--o Re Kabira 066 o--

स्याही की व्यथा


स्याही की व्यथा

स्याही ही हूँ,
लिखती हूँ ख़बर कभी ख़ुशी की और कभी ग़म की
लिखती हूँ चिट्ठी कभी इंतेज़ार की और कभी इज़्हार की
लिखती हूँ कहानी कभी कल्पना की और कभी हक़ीक़त की

स्याही ही हूँ,
लिखती हूँ परीक्षा कभी जीवनी के लिए और कभी जीवन के लिए
लिखती हूँ कविता कभी दर्द छुपाने के लिए और कभी दिखाने के लिए
लिखती हूँ कटाच्छ कभी झंझोलने के लिए और कभी सोचने के लिए

स्याही ही हूँ,
लिखती हूँ भजन भगवान् को बुलाने के और कभी भगवान् के समीप जाने के
लिखती हूँ फरमान कभी आज़ादी के और कभी गुलामी के
लिखती हूँ पैगाम कभी समझातों के और कभी साज़िशों के

स्याही ही हूँ,
लिखती हूँ यादें कभी याद करने के लिए और कभी भूल जाने के लिए
लिखती हूँ चुटकुले-व्यंग हॅसने के लिए और हँसाने लिए
लिखती हूँ कथा-आत्मकथा कभी महापुरषों के लिए और कभी दुष्टोँ के लिए

स्याही ही हूँ,
लिखती हूँ शिकायतें कभी बदलाव के लिए और कभी न बदलने के लिए
लिखती हूँ गाथाएँ कभी इतिहास बतलाने के लिए और कभी बहकाने के लिए 
लिखती हूँ संविधान कभी राष्ट्र बनाने के लिए और कभी बटवाने के लिए

स्याही ही हूँ,
लिखती हूँ रंगों में कभी बस रंग मत समझ लेना
लिखती हूँ कागज़ पर कभी तलवार से काम मत समझ लेना
लिखती हूँ शांति के गीत कभी तूफान से काम मत समझ लेना

स्याही ही हूँ,
लिखती हूँ तुम्हारे के लिए कभी मेरे लिए भी लिख देना
लिखती हूँ की न मेरे लिए लिख सको तो कभी कभी अपने लिए लिखते रहना
लिखती हूँ हमेशा किसी न किसी के लिए कभी मेरे लिए भी लिख देना


आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley

--o Re Kabira 066 o--

Most Loved >>>

रंग कुछ कह रहे हैं - Holi - Colours Are Saying Something - Hindi Poetry - Re Kabira 106

Re Kabira - सर्वे भवन्तु सुखिनः (Sarve Bhavantu Sukhinah)

मैंने अपने आप से ही रिश्ता जोड़ लिया - Relationships - Hindi Poetry - Re Kabira 107

Re Kabira 0025 - Carving (Greed) रुखा सूखा खायके

सच्ची दौलत - Real Wealth - Hindi Poetry - Re Kabira 105

Re Kabira 080 - मन व्याकुल

Re Kabira 0067 - लता जी का तप

Inspirational Poets - Ramchandra Narayanji Dwivedi "Pradeep"

चौराहा - Midlife Crisis - Hindi Poetry - Re Kabira 104

ये मेरे दोस्त - My Friends - Re Kabira 103