Re Kabira 078 - ऐसे कोई जाता नहीं
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ऐसे कोई जाता नहीं
आज फिर आखों में आँसू रोके हूँ, आज तो मैं रोऊँगा बिल्कुल नहीं
आज मैं और भी ख़फ़ा हूँ, आज मैं चुप रह सकता बिल्कुल नहीं
जाना तो है सबको एक दिन, पर ऐसे जाने का हक़ तुझको था ही नहीं
बहुत तकलीफ़ हो रही है, पर आँसू बहाने की मोहलत मिली ही नहीं
बिछड़ने के बाद पता चला, फ़ासले सब बहुत छोटे हैं कोई बड़ा नहीं
हमेशा की तरह पीछे-अकेले छोड़ गया, देखा मुझे पीछे खड़ा क्यों नहीं
इतनी शिकायतें है मुझको, पर अच्छे से लड़ने का मौक़ा तूने दिया ही नहीं
ग़ुस्सा करने हक़ है मेरा, पर किस को जताऊँ तू तो अब यहाँ है ही नहीं
वो ठिठोलियाँ, वो छेड़खानियाँ, फ़र्श पर लोट-लॉट कर हँसना, याद करूँ या नहीं?
केवल खाने की बातें, खाने के बाद मीठा, और फिर खाना, याद करूँ कि नहीं?
वो साथ लड़ी लड़ाइयाँ, रैगिंग के किस्से, छुप कर सुट्टे, याद करने के लिए तू नहीं
बिना बात की बहस, टॉँग खीचना, मेरी पोल खोलने वाला अब कभी मिलेगा नहीं
आँखें बंद करूँ या खोल के रखूँ, तेरा मसखरी वाला चेहरा हटता ही नहीं
खिड़की से बाहर काले बादल छट गए, फिर भी तू दिखता क्यों नहीं
रह-रह कर याद आते है हर एक पल, फिर मिलेंगे - ये दो लफ़्ज़ों की बातें नहीं
कैसे ये यक़ीन दिलाऊँ ख़ुद को, कि अब हमारी यादें हैं और हम नहीं
हमेशा हँसते रहा, मुखौटे के पीछे के राज़ किसी को बताया क्यों नहीं?
बोला इस साल मिलते हैं, पर अपना वादा-ए-दोस्ती निभाया क्यों नहीं?
जाने की इतनी जल्दी मची थी, ख़ुदा से हमारी बात तो करी ही नहीं
कोशिश करूँगा ख़ुद को बहला लूँ, मलाल रहेगा फिर मिलेंगे बोला ही नहीं
ऐसे कैसे भूला दूँ तुझको, कोई तरकीब बताई तूने कभी नहीं
मुस्कराती तस्वीरों में ही सही, भूलूँगा मैं तुझे मेरे दोस्त कभी नहीं
गले मिलने का इंतज़ार करता रह गया, ऐसे कोई जाता नहीं
ऐसे थोड़े होता है, ऐसे कोई सताता नहीं, ऐसे कोई जाता नहीं
आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
@OReKabira
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