एक बूँद की औकात - Re Kabira 094

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एक बूँद की औकात

एक बूँद की औकात

बाग़ीचे के कोने में लगे नल से पानी टपकता रहा पूरी रात
बूँद-बूँद से भर गए कच्ची सड़क के खड्डे मानो हुई बरसात

टिड्डे-मक्खी-मच्छर भिनभिना लगे अंजाम देने कोई वारदात
बैठी गैया को मिली राहत तपती धुप कर रही थी आघात

पक्षियों का भी लगा ताँता आए फुदक डाल-डाल पात-पात
पंडा जपत मंत्र तोड़ लाओ लाल फूल बगिया से बच बचात

कीचड़ देख गली के बच्चों को सूझन लगी गजब खुरापात
मिल गया मौका उधम मचाने का ज्यों एक ने की शुरुआत

मोहल्ले का बनिया चिल्लाया सुधारोगे नहीं बिना खाये लात
चिड़चिड़ा माली को बोला काहे नलके को नाही सुधरवात? 

बड़बड़ाया माली कोई न सुधारे कह पीते पानी छोटी जात
और बोले मुनीम हरी रहती मैदानी घास क्यों मचाते उत्पात?

गुस्से में निकला बनिया झगड़ने त्यों भागे बच्चे दे उसे मात
फसी धोती फिसल गिरा धपाक मिली कीचड़ की सौगात

सोचे ओ रे कबीरा चूँती टोटी ने सीखा दी इतनी बड़ी बात
मार ताना बोला लाला तू तो जाने ही है एक बूँद की औकात


आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
@OReKabira

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