चलो पवन को ढूँढ़ते हैं - Re Kabira 097

-- o Re Kabira 097 o--

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चलो पवन को ढूँढ़ते हैं,
चलो अपने दोस्त का पता लगाते हैं, 
कल तो वो यहीं था, 
चार दिन पहले ही तो बात हुई,
थोड़ा समय हुआ मुलाकात हुई,
आज ऎसी क्या बात हो गई?

अचानक पता चला,
अख़बारों में भी ख़बर छपी,
फ़ोन बजे सन्देश पढ़े,
लतापा है गुमशुदा है,
यहाँ देखो वहाँ पूछो,
किसी को तो इसका पता हो?

सब हैरान, सब परेशान,
ऐसे कैसे बिना बताये चला गया वो,
कभी गलत कदम नहीं उठा सकता जो,
जहाँ मिले थोड़ा सुकून वहीँ,
है यकीन कि है वो यहीं कहीं,
किसी को कोई शक संदेह तो नहीं?

अफ़वाहें उड़ी अटकलें लगी,
अनुमान लगे धारणाएँ बनी,
ख्याल बुने विचार घड़े,
कुछ सच्ची अधिक्तर झूठी बातें पता चलीं,
कुछ वाद हुए अधिक्तर विवाद बने,
कुछ आगे बड़े अधिक्तर अभी भी क्यों पीछे खड़े?

लड़ रहा है वो अपने हिस्से की लड़ाई,
कभी छुपाई कभी मुस्कुराते हुए बताई,
अन्वेषण अन्वीक्षण विवेचन आलोचन जाँच-पड़ताल,
ये सब तो हो रहा है और होता रहेगा,
जो हमारे वश में है चलो वो करते हैं
य फिर हाथ पर हाथ धरे बैठे रह सकते हैं?

बोले ओ रे कबीरा,
वो तो अभी गुमशुदा है,
तुम 
सब अब तक थे लापता,
मिल ही गए हो तो,
चलो हल्ला मचाके पवन को  ढूँढ़ते है,
चलो हंगामा करके पवन को ढूँढ़ते है

चलो पवन को ढूँढ़ते हैं,
चलो अपने दोस्त पता लगाते हैं !!!

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आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
@OReKabira

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