बुलन्द दरवाज़ा - Re Kabira 100
-- o Re Kabira 100 o--
बुलन्द दरवाज़ा
हमारी यादों को जो फिर ताज़ा कर दे,
हमारी कहानियों में वापस जान डाल दे,
देख जिसे ज़माना रुके और लोग कहें,
यादगार हो तो ऐसी,
निशानी हमारी बे-जोड़, बे-मिसाल होना चाहिए।
हमारे सपनो जैसी रंगों से भरी,
हमारे इरादों जैसी ज़िद सी खड़ी,
देख जिसे उम्मीद बंधे और लोग कहें
यादगार हो तो ऐसी,
छाप हमारी एक मिसाल होना चाहिए।
हमारे बढ़ते कदमो जैसी अग्रसर,
हमारे फैलते पँखों जैसी निरंतर,
गुज़रने वाले गर्व करें और लोग कहें,
यादगार हो तो ऐसी,
मुहर हमारी बस कमाल होना चाहिए।
हमारे बिताये चार सालों का मान धरे,
हमारी उपलब्धियों की एक पहचान बने,
योगदान प्रेरित करे और लोग कहें,
यादगार हो तो ऐसी,
जीत का प्रतीक शानदार होना चाहिए।
हमारे २५ साल के सफ़र सी अनुपम,
हमारी यारी-दोस्ती की तरह शाश्वत,
जब हम मिलें जश्न मने और हम कहें,
यादगार हो तो ऐसी,
आरंभ का द्वार बुलन्द होना चाहिए।
हमारी निशानी, हमारी छाप,
हमारी मुहर,
हमारी जीत का प्रतीक,
हमारे आरंभ का द्वार बुलन्द होना चाहिए !
बुलन्द होना चाहिए !
आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
@OReKabira