क्यों न? - Why Not? - Re Kabira 102

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क्यों न ?
क्यों न ?


क्यों न ?

 क्यों न ख़ुद को ढूंढ लिया जाए?
इससे पहले वो कहीं गुम हो जाए,
कहाँ अकेले गुम होते जा रहे हो,
किधर धुंध में खोते जा रहे हो, 
चलते-चलते ख़ुद 
को ही न भूल जाओ,
भागते-भागते आप को न पीछे छोड़ जाओ,
क्यों बीती बातों से इतना परेशान हो?
क्यों अपने आप से इतना नाराज़ हो?

क्यों न ख़ुद को पहचान लिया जाए?
इससे पहले वो कोई अनजान हो जाए,
कहाँ कोई तुम्हे समझ पायेगा,
कोई और तुम्हे क्या बतलाएगा,
तरह-तरह के भेष न बदलते जाओ,
जगह-जगह अकेले न भटकते रह जाओ,
क्यों दुसरे के नज़रिये को अपनाते हो?
क्यों अपने आप पर इतने कठोर हो जाते हो?

क्यों न खुद को माफ़ कर दिया जाए?
इससे पहले वो सोच का कैदी बन जाए,
कुछ गलितयाँ तो करोगे नहीं खुदा हो,
कोई कहाँ मिलेगा जो अमोघ-अभ्रान्त हो,
धीरे-धीरे ही सही ग़लतियों से सीखते जाओ,
बार-बार ही सही सुधार आगे बढ़ते जाओ,
क्यों रुकावटों 
से गलितयों से हारे लगते हों?
क्यों अपने आप को सज़ा देने उतारू दिखते हो?

क्यों न ख़ुद से समझौता कर लिया जाए?
इससे पहले वो बड़ा मसला बन जाए,
कहाँ औरों के सामने रोना रोते हो,
कोई हँसाएगा नहीं यूँही मज़ाक बनते हो,
हँसते-हँसते ख़ुद पर चुटकुले सुनाते जाओ,
चुपके-चुपके मुश्किलों से लड़ते जाओ,
क्यों भला किसी और से उम्मीद रखते हो?
क्यों अपने आप को इतना छोटा करते हो?

क्यों न ख़ुद के साथ सैर कर ली जाए?
इससे पहले वो कहीं दूर निकल जाए,
कहाँ भीड़ में भी अकेले चले जा रहे हो,
कोई दिखता नहीं किससे लड़े जा रहे हो,
सीढ़ी-सीढ़ी मंज़िल की ओर बढ़ते जाओ,
कदम-कदम तोड़ चट्टान रास्ता बनाते जाओ,
क्यों नहीं भेड़ चाल से बचते हो?
क्यों अपने आप से आखँ मिचोली करते हो?

क्यों न ख़ुद से एक बात कर ली जाए?
इससे पहले वो कोई पहेली न बन जाए,
कुछ अपने लिए भी वक़्त निकालो,
कोई सुंदर कविता आप को सुनालो,
छोटे-छोटे अनगिनत पल यूँही सँजोते जाओ,
बड़ी-बड़ी अड़चनों को लाँघ मुस्कुराते जाओ,
क्यों खुद से इतनी दूर बने रहते हो?
क्यों अपने आप को मामूली समझते हो?

क्यों न ख़ुद से मोहब्बत कर ली जाए?
इससे पहले वो इंतज़ार में थक जाए,
कहाँ तुम किसी से या आप से दूर खड़े हो,
कोई बड़ी बात नहीं ख़ुद से रूठे पड़े हो,
बूँद-बूँद बारिश के मज़े लेते जाओ,
ज़ोर-ज़ोर पसंदिता गाने गाते जाओ,
क्यों क़दमों को ज़ंजीरों में जकड़े हो?
क्यों अपने आप से इज़हार से डरते हो?

क्यों न ख़ुद को ढूंढ लिया जाए?
क्यों न ख़ुद को पहचान लिया जाए?
क्यों न खुद को माफ़ कर दिया जाए?
क्यों न ख़ुद के साथ सैर कर ली जाए?
क्यों न ख़ुद से एक बात कर ली जाए?
क्यों न ख़ुद से मोहब्बत कर ली जाए?
क्यों न ख़ुद को ढूंढ लिया जाए?
क्यों न ख़ुद को पहचान लिया जाए?
क्यों न?




आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
@OReKabira

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