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लिखते रहो Keep Writing - Re Kabira 101

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-- o Re Kabira 101 o-- लिखते रहो लिखते रहो, शब्द शक्तिशाली हैं  तो अजब मायावी भी हैं  शब्दों में ध्यान  की  ताक़त है तो ज्ञान  की  चाहत भी है  लिखते रहो, शब्द प्रहार कर देते हैं  तो वहीं मरहम् भी देते हैं शब्दों में मन की खटास है तो दिल की मिठास भी है लिखते रहो, शब्द मसले बन जाते हैं तो ये मसलों को हल भी कर जाते हैं  शब्दों से दीवारें खड़ी हो जातीं हैं तो पहाड़ मिट्टी में भी मिल जाते हैं लिखते रहो, शब्द लोगों को जगा सकते हैं तो आसानी से बँटवाते भी है शब्दों में बहकाने की, भड़काने की फ़ितरत है  तो मोहब्बत फैलाने की आदत भी है लिखते रहो, शब्द तुम्हें बाँध देते हैं तो बन्धनों से मुक्त भी करते हैं शब्दों से ही गीत है प्रीत है मीत है तो भक्ति की शक्ति भी है लिखते रहो, शब्द ही अल्लाह और राम हैं तो रावण और शैतान भी हैं  शब्दों में राम है श्याम है तो सियाराम राधेश्याम भी है लिखते रहो, शब्द बेज़ुबान की जान हैं तो इनके बिना ज़ुबानी बेजान हैं शब्दों में ही तो बड़े-बड़े गुमनाम हैं तो ये कितनों की पहचान भी हैं  लिखते रहो, शब्द ही तुम्हारे व्...

बुलन्द दरवाज़ा - Re Kabira 100

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-- o Re Kabira 100 o-- बुलन्द दरवाज़ा  हमारी यादों को जो फिर ताज़ा कर दे, हमारी कहानियों में वापस जान डाल दे, देख जिसे ज़माना रुके और लोग कहें, यादगार हो तो ऐसी, निशानी हमारी बे-जोड़, बे-मिसाल होना चाहिए।  हमारे सपनो जैसी रंगों से भरी, हमारे इरादों जैसी ज़िद सी खड़ी, देख जिसे उम्मीद बंधे और लोग कहें  यादगार हो तो ऐसी, छाप हमारी एक मिसाल होना चाहिए।  हमारे बढ़ते कदमो जैसी अग्रसर, हमारे फैलते पँखों जैसी निरंतर, गुज़रने वाले गर्व करें और लोग कहें, यादगार हो तो ऐसी, मुहर हमारी बस कमाल होना चाहिए।  हमारे बिताये चार सालों का मान धरे, हमारी उपलब्धियों की एक पहचान बने,  योगदान प्रेरित करे और लोग कहें, यादगार हो तो ऐसी, जीत का प्रतीक शानदार होना चाहिए।  हमारे २५ साल के सफ़र सी अनुपम,  हमारी यारी-दोस्ती की तरह शाश्वत, जब हम मिलें जश्न मने और हम कहें, यादगार हो तो ऐसी, आरंभ का द्वार बुलन्द होना चाहिए।  हमारी निशानी, हमारी छाप,  हमारी मुहर, हमारी जीत का प्रतीक,  हमारे आरंभ का द्वार बुलन्द होना चाहिए ! बुलन्द होना चाहिए ! आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhur...

पल - Moment - Re Kabira 098

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-- o Re Kabira 098 o-- पल Moment पल पल पल पल पल कल पल अगल पल पल कल कल पल कल पल पिछल पल पल पल पल पल चल पल अचल पल पल चल चल पल चल पल अटल पल पल पल पल पल तल पल जबल पल पल तल तल पल तल पल सुतल पल पल पल पल पल भल पल जटल पल पल बल बल पल बल पल प्रबल पल पल पल पल पल छल पल उटल पल पल फल फल पल फल पल सफल पल पल पल पल पल कल कल पल पल पल पल पल पल चल चल पल don't ponder too much on the past and future live the present moment moments keep passing and still appear fixed and firm live in the present moment moments can appear as tall as mountains and as deep as oceans live in the present moment some moments can be strong, complex, and powerful live in the present moment moments can be treacherous, restless, and successful live in the present moment don't ponder too much on the past and future moment will come and go live the present moment आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira -- o Re Kabira 098 o--

शौक़ नहीं दोस्तों - Re Kabira 095

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-- o Re Kabira 095 o--   शौक़ नहीं दोस्तों वहाँ जाने का है मुझे शौक़ नहीं दोस्तों जहाँ ज़िस्म तो है सजे रूह नहीं दोस्तों कुछ सुनना है कुछ सुनाना भी दोस्तों जो कह न सकें गले लगाना भी दोस्तों तस्वीरों में सब ज़ख़्म छुपाते हैं दोस्तों अरसा हुआ मिले दर्द बताना है दोस्तों  ख़ुशियाँ अधूरी हैं जो बाँटी नहीं दोस्तों महफ़िलें बेगानी हैं जो तुम नहीं दोस्तों हमारी यादें हैं जो बारबार हँसाती दोस्तों मुलाक़ातें ही हैं जो क़िस्से बनाती दोस्तों वक़्त लगता थम गया था जो तब दोस्तों धुँधली यादों के पल जीना वो अब दोस्तों गलियारों में गूँजे अफ़साने हमारे दोस्तों दरवाज़ों पे भी हैं गुदे नाम तुम्हारे दोस्तों गले में हाथ डाल बेख़बर घूमना दोस्तों बेफ़िक्र टूटी चप्पल में चले आना दोस्तों गुनगुनाना धुने जो कभी भूली नहीं दोस्तों झूमें गानों पर जो फिर ले चले वहीं दोस्तों कुछ रास्ते है जहाँ बेहोशी में भी न गुमे दोस्तों कुछ गलियाँ हैं वहाँ हमारे निशाँ छुपे दोस्तों लोग कहते हैं फ़िज़ूल वक़्त गवाया दोस्तों कौन समझाए क्या कमाया है मैंने दोस्तों कल हो न हो आज तो मेरे है पास दोस्तों कोई हो न हो तुम मिलोगे है...

Re Kabira 086 - पतंग सी ज़िन्दगी

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  --o Re Kabira 86 o-- पतंग सी ज़िन्दगी आज बड़े दिनों बाद एक लहराती हुई पतंग को देखा, देखा बड़े घमंड से, बड़ी अकड़ से तनी हुई थी थोड़ा गुमा था कि बादलों से टकरा रही है, हवा के झोंके पर नख़रे दिखा रही है   यकीन था... मनचली है, आज़ाद है.. एहसास क़तई न था कि बंधी है, एक कच्ची डोर से, नाच रही है किसी के इ शारों पर, धागे के दू सरे छोर पे, इतरा रही है परिंदों की चौखट पर, आँखें दिखाती ज़ोर से   ज़रा इल्म न था कि तब तक ही इतरा सकती है, जब तक अकेली है तब तक ही दूर लहरा सकती है, जब तक हवा सहेली है   जैसे ही और पतंगे आसमान में नज़र आ ई , घबराने लगी ! जैसे ही हवा का रुख बद ला , लड़खड़ाने लगी !   डर था, कहीं डोर कट ग ई , तो आँधी कहाँ ले जा ए गी?   डर था, कहीं बादल रूठ ग ए , तो कैसे इठलाएगी?   डर था, कहीं बिछड़ ग ई , तो क्या अंजाम पा ए गी?   डरी हुई थी, सहमी हुई थी...   वो काटा है !! हुँकार गूँज उठी.. एक फ़र्राटेदार झटके में , पलक झपकते, दूजी पतंग ने काट दी नाज़ुक़ डोर, अकड़ चली ग ई , कट ग ई ,...

Re kabira 085 - चुरा ले गए

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  --o Re Kabira 85 o-- चुरा ले  ग ए हमारे जीवन के कुछ अनुभव ऐसे होते हैं जो रह-रह कर आपको परेशान करते हैं। आप चाह कर भी उन्हें नज़र अंदाज़ नहीं कर पाते, वो वापस किसी न किसी रूप में उभर आते हैं। समझ नहीं आता कि उन्हें कैसे भूला जाए, कैसे पीछे छोड़ कर आगे बढ़ा जाए।  धोखा ! छल ! किसी परिचत द्वारा, किसी मित्र द्वारा कुछ ऐसा कर जाता है ।  मानो जैसे किसी जानने वाले ने आपके घर में चोरी कर ली हो। आपको पता है किस ने चोरी की है, शायद बीमा / insurance से माल की भरपाई तो हो जाये, पर आपकी प्रिय वस्तु कभी वापस नहीं आएगी। भरोसा एक ऐसी ही प्रिय वस्तु है, उसकी कोई कीमत नहीं लगायी जा सकती।  धोखा, छल  आपके आत्मविश्वास को तोड़ देता है, आत्मशक्ति को झंझोड़ देता है। आप परेशान रहते हो पर आपको धोखा देने वाला व्यक्ति आगे बढ़ जाता है, किसी और को अपनी आदत से क्षति पहुंचाने। आप समझ नहीं पाते क्या करें? ऐसी स्थिति को व्यक्त करती एक कविता - "चुरा ले गए" चुरा ले  ग ए चुरा ले गए सुबह से ताज़गी, कुछ लोग शाम से सादगी चुरा ले गए चुरा ले गए ज़िन्दगी से दिल्लगी, कुछ लोग बन्दे से बंद...

Re Kabira 083 - वास्ता

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    --o Re Kabira 83 o-- वास्ता बस चार कदमों का फासला था, जैसे साँसों को न थमने का वास्ता था  रुक गये लफ़्ज़ जुबान पर यूँ ही, जैसे शब्दों को न बयान होने का वास्ता था   निग़ाहें उनकी निग़ाहों पर टिकी थीं, मेरी झिझक को तीखी नज़रों का वास्ता था कुछ उधेड़ बुन में लगा दिमाग़ था, क्या करूँ दिल को दिल का वास्ता था कलम सिहाई में बड़ी जद्दोज़हद थी, पर ख़्वाबों को ख़यालों का वास्ता था लहू को पिघलने की ज़रूरत न थी, पर ख़ून के रिश्तों का वास्ता था फूलों को खिलने की जल्दी कहाँ थी, कलियों को भवरों के इश्क़ का वास्ता था बारिश में भीगने का शौक उनको था, कहते थे बादलों को बिजली का वास्ता था दो शब्द कहने की हिम्मत कहाँ थी, पर महफ़िल में रफ़ीक़ों का वास्ता था थोड़ा बहकने को मैं मजबूर था, मयखाने में तो मय का मय से वास्ता था न मंदिर न मस्ज़िद जाने की कोई वजह थी, मेरी दुआओं को तेरे रिवाज़ों का वास्ता था  न ही तेरे दर पर भटकने की फ़ितरत थी, ओ रे कबीरा ... मुझे तो मेरी शिकायतों का वास्ता था    मुझे तो मेरी शिकायतों का वास्ता था    ...

Re Kabira 080 - मन व्याकुल

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  --o Re Kabira 080 o-- मन व्याकुल मन व्याकुल क्यों विचलित करते, ये अनंत विचार झंझोड़ देते क्यों निर्बल करते, ये अंगिनत आत्म-प्रहार प्रबल-प्रचंड-उग्र-अभिमानी,   झुकते थक कर  मान हार चक्रवात-ओला-आंधी-बौछाड़ रूकती, रुकते क्यों नहीं ये व्यर्थ आचार क्यों टोकते, क्यों खट-खटाते, स्वप्न बनकर स्मिर्ति बुनकर ये दुराचार कहाँ से चले आते क्यों चले आते, ये असहनीय साक्षात्कार केवल ज्ञान-पश्चाताप-त्याग-परित्याग, भेद न सके चक्रव्यूह आकार कर्म-भक्ति-प्रार्थना-उपासना, है राह है पथ नहीं दूजा उपचार मन व्याकुल क्यों विचलित करते, ओ रे कबीरा... ये अनंत विचार राम नाम ही हरे, राम नाम ही तरे, राम नाम ही जीवन आधार आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira   --o Re Kabira 80 o--

Re Kabira 079 - होली 2023

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  --o Re Kabira 079 o-- बुरा न मानो होली है   छिड़को थोड़ा प्यार से तो सारे रंग ही रंग है जो ज़रा सी भी कड़वाहट न हो तो प्रेम अभंग है पकवानों में, मिठाईयों में, वैसे तो स्वादों  के  रंग ही रंग है  जो कोई द्वारे भूखा न सोये तो मानो जीती ये जंग है हँसते मुस्कराते चेहरों में खुशियों के रंग ही रंग है जो सभी के पुछ जायें अश्रु तो सच्ची उमंग है दूर-दूर तक गाने बजाने में जोश के रंग ही रंग है  जो हम अभिमान के नशे धुत्त न हों तो स्वीकार ये ढंग है  छेड़खानियों में, चुटकुलों में तो हास्य रंग ही रंग है  जो बदतमीज़ी जबरजस्ती हटा दी जाये तो असली व्यंग है? भीगे कपडों में लिपट पिचकारी में लादे सारे रंग ही रंग हैं  जो एक प्याली चाय और पकोड़े हो जायें तो दूर तक उड़े मस्ती की पतंग है  घर-परिवार, मित्र-दोस्तों के साथ त्योहार मानाने में रंग ही रंग है  जो थोड़ी भक्ति मिला दें, आस्था घोल दें तो होली नहीं सत संग है  हम सब दूर सही पर संग हैं तो हर तरफ़ रंग ही रंग है  जो रूठ कर घर में छुप कर बैठे तो जीवन बड़ा बेरंग है  गिले-शिकवे...

Re Kabira 077 - लड़ाई

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--o Re Kabira 077 o-- लड़ाई सब लड़ रहे कोई न कोई लड़ाई कुछ चारों छोर से  किसी की है अपने आप से लड़ाई तो किसी की और से   ज़रूरी नहीं कि दिखे चोटों में, या फिर टूटी चौखटों में छिप जाती हैं अधिक्तर लड़ाई, मुस्कुराते मुखौटों में अगर मैं नहीं लड़ूँगा अपनी लड़ाई, तो और कौन  सबको लड़नी खुद की लड़ाई, बाँकी सारे मौन   झंझोड़ देती, तो कभी निचोड़ देती, पर लड़ना मजबूरी है क्यों घबड़ाता है लड़ने से, ओ रे कबीरा लड़ते रहना ज़रूरी है लड़ाई अपनी अपनी होती है, खुद को ही लड़ना होती है  उम्मीद की कोई और लड़ेगा, फ़िज़ूल खर्च लड़ाई होती है आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira   --o Re Kabira 077 o--

Re Kabira 073 - ख़रोंचे

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  --o Re Kabira 073 o-- ख़रोंचे किसको ज़रूरत है काँटीले तारों की, वैसे ही बहुत ख़रोंचों के निशाँ है जिश्म पर किसको चाहिये ख़्वाब भारी चट्टानों से, ज़िन्दगी की लहरों ने क्या कम तोड़ा है टकरा कर   किसको जाना धरा की दूसरी छोर तक, चार कदमों का फासला ही काफी है चलो अगर किसको उड़ना है आसमान के पार, बस कुछ बादल चाहिये हैं जो बरसे जम कर किसको बटोरना है दौलत सारे जहाँ की, चकाचक की होड़ मे सभी लगे हुये हैं देखो जिधर  किसको इकट्ठे करने सहानुभूति दिखाने वालों को, चारों ओर हज़ारों की भीड़ है सारे बुत मगर किसको चाह है किसी कि दुआ की, लगता है बद-दुआ ही है जिसका हुआ असर  किसको सहारा चाहिये मदहोशी का, ये अभिमान का ही तो नशा है जो चढ़े सर किसको हिसाब चाहिये हर पल का, थोड़ा वक़्त तो निकाल सकते हैं साथ एक पहर किसको लूटना है वाह-वाही सब की, कभी-कभी तो हम बात कर सकतें हैं तारीफ़ कर किसको पढ़ना है कवितायेँ शौर्य-सुंदरता की, बस एक शब्द ही काफी है शुक्रिया-धन्यवाद कर  किसको ज़रूरत है काँटीले तारों की, वैसे ही बहुत ख़रोंचों के निशाँ है जिश्म पर आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OR...

Re Kabira 072 - बातें हैं बातों को क्या !!!

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--o Re Kabira 072 o-- बातें हैं बातों को क्या  बातों बातों में निकल पड़ी बात बातों की,  कि बातों की कुछ बात ही अलग है  मुलाकातें होती हैं तो बातें होती हैं, फिर मुलाकातों की बातें होती है और मुलाकातें न हो तो भी बातें होती है देखे तो नहीं, पर बातों के पैर भी होते होंगे, कुछ बातें धीरे की जाती हैं, कुछ तेज़, कुछ बातें दबे पाँव निकल गयी तो दूर तक पहुँच जाती हैं  कुछ बातें दिल को छु कर निकल जाती हैं, और कभी सर के ऊपर से  कुछ बातें तो उड़ती-उड़ती, और कभी गिरती-पड़ती बातें आप तक पहुँच ही जाती है  बातों के रसोईये भी होते होंगे, जो रोज़ बातें पकाते हैं  कुछ लोग मीठी-मीठी बातें बनाते हैं, कुछ कड़वी बातें सुना जातें हैं कभी आप चटपटी बातें करते हैं, तो कभी मसालेदार बातें हो जाती हैं   और कुछ बातें तो ठंडाई जैसी होती है, दिल को ठंडक पहुंचा जाती हैं  वैसे तो अच्छी बातें, बुरी बातें, सही बातें और गलत बातें होती  हैं बातों का वजन भी होता है, कुछ हलकी होती हैं तो कुछ बातें भारी हो जाती हैं यूं तो कुछ लोग बातें छुपा लेते, तो...

Re Kabira 0070 - अभी बाँकी है

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--o Re Kabira 070 o-- अभी बाँकी है कभी ठहाके कभी छुपी हुई मुस्कुराहटें, हँसते हँसते रोना अभी बाँकी है कुछ किस्से कुछ गप्पें, कुछ नयी और बहुत सी पुरानी कहानियाँ सुनना अभी बाँकी है  हमने तो आप लोगों को पूरी तरह परेशान करा, आपका थोड़ा तो बदला लेना अभी बाँकी  है  काफ़ी पिटाई करी खूब कान मरोड़े, अक्ल अभी भी हमको न आयी,  ...और डाँट खाना अभी बाँकी है हम लोगों को आपने जैसे तैसे निबटा दिया, हमारी अंग्रेज औलादों को निबटना अभी बाँकी है  खूब पैसे जोड़ लिए, खूब बचत कर ली, हमारे लिए ... अपने ऊपर कुछ खर्चना अभी बाँकी है   बहुत भागा-दौड़ी, चिंता विंता हो गयी, कुछ पल फुर्सत से बिताना अभी बाँकी है  कसर कोई छोड़ी नहीं हमारे लिए, हमारी परीक्षा तो अभी बाँकी है बहुत से चुटकुले, बहुत सी अटकलें, आपका बहुत सी महफ़िलों को चहकाना अभी बाँकी है अहिल्या  की कहानियाँ चल ही रही है, हमारे पप्पू के कारनामे सुनना अभी बाँकी है  अकेले चाय पीने में बिलकुल मज़ा नहीं आता, खूब चाय पीना अभी बाँकी है  आपकी मुस्कराहटों पर आपकी हँसी पर लाखों न्योछारावें अभी बाँकी है  बहुत सारा प्...

Re Kabira 0069 - रंगों में घोली होली है

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  --o Re Kabira 069 o-- रंगों में घोली होली है देखो कैसी ये होली है, हमने रंगों में घोली होली है छिड़क तनिक गुलाल, प्यार जताने की होली है मार पिचकारी लाल रंग की, शिक़वे मिटाने की होली है सन दो कौसुम्भ की सुगंध में, ये मानो भक्तों की होली है गोबर की जो महक आये, तो भैया भागो अंध-भक्तों की होली है जहाँ नील ही नील दिखे, समझो आज खूब खेली होली है जरा सिन्दूर चढ़ा कर, पुजारी ने भी खेली होली है पीलक ने भी खेली, मौसम बदलने के होली है नारंगी-हरे रंग में फ़रक न दिखे, तो ये असली होली है राख में ढ़के हुए, साधु-सन्यासियों ने खेली होली है श्वेत टिका लगाए, वृन्दावन के आश्रम में खिली होली है माटी-कीचड़ में सने, श्रमिक-किसानों की भी ये होली है मिट्टी में लिपटे हुए, माली के बच्चों ने खेली होली है श्याम रंग में छुपे, कुछ अतरंगों की होली है रंगों की होदी में धकेल, दोस्तों ने भी खेली होली है चार लकीरें रंगो में लगाकर ही सही, हिचकिचाहट से कुछ लोगों ने खेली होली है कुछ गीली कुछ सूखी, नीली-पीली, लाल-गुलाबी सतरंगों में डूबी हुई, आज खुशियों की होली है रंगों में घोली होली है, होली है भाई होली है.. आशुतोष ...