रखो सोच किसान जैसी - Re Kabira 096
-- o Re Kabira 096 o-- आचार्य रजनीष "ओशो" के प्रवचन से प्रेरित कविता रखो सोच किसान जैसी ! मेहनत से जोते प्यार से सींचे अड़चने पीछे छोड़े उखाड़ फैंके खरपतवार दिखती जो दुश्मनों जैसी खाद दे दवा दे दुआ दे दुलार दे रह खुद भूखे प्यासे दिन रात पहरा दे ध्यान रखे मानो हो बच्चों जैसी रखो सोच किसान जैसी ! कभी न कोसे न दोष दे अगर पौध न बड़े जल्दी भूले भी न चिल्लाए पौधो पर चाहे हो फसल जैसी न उखाड़ फेंके पौध जब तक उपज न हो पक्की चुने सही फसल माटी-मौसम के मन को भाए जैसी रखो सोच किसान जैसी ! पूजे धरती नाचे गाये उत्सव मनाए तब हो बुआई दे आभार फिर झूमे मेला सजाये कटाई हो जैसी बेचे आधी, बोए पौनी, थोड़ी बाँटे तो थोड़ी बचाए अपने पौने से चुकाए कर्ज़े की रकम पर्वत जैसी रखो सोच किसान जैसी ! प्रवृत्ति है शांत पर घबराते रजवाड़े नेता व शैतान कभी अच्छी हो तो कभी बुरी सही कमाई हो जैसी न कोई छुट्टी न कोई बहाना न कुछ बने मजबूरी सदा रहती अगली फसल की तैयारी पहले जैसी ओ रे कबीरा, रखो सोच किसान जैसी ! रखो सोच किसान जैसी ! आशुतोष झुड़े...