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बुलन्द दरवाज़ा - Re Kabira 100

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-- o Re Kabira 100 o-- बुलन्द दरवाज़ा  हमारी यादों को जो फिर ताज़ा कर दे, हमारी कहानियों में वापस जान डाल दे, देख जिसे ज़माना रुके और लोग कहें, यादगार हो तो ऐसी, निशानी हमारी बे-जोड़, बे-मिसाल होना चाहिए।  हमारे सपनो जैसी रंगों से भरी, हमारे इरादों जैसी ज़िद सी खड़ी, देख जिसे उम्मीद बंधे और लोग कहें  यादगार हो तो ऐसी, छाप हमारी एक मिसाल होना चाहिए।  हमारे बढ़ते कदमो जैसी अग्रसर, हमारे फैलते पँखों जैसी निरंतर, गुज़रने वाले गर्व करें और लोग कहें, यादगार हो तो ऐसी, मुहर हमारी बस कमाल होना चाहिए।  हमारे बिताये चार सालों का मान धरे, हमारी उपलब्धियों की एक पहचान बने,  योगदान प्रेरित करे और लोग कहें, यादगार हो तो ऐसी, जीत का प्रतीक शानदार होना चाहिए।  हमारे २५ साल के सफ़र सी अनुपम,  हमारी यारी-दोस्ती की तरह शाश्वत, जब हम मिलें जश्न मने और हम कहें, यादगार हो तो ऐसी, आरंभ का द्वार बुलन्द होना चाहिए।  हमारी निशानी, हमारी छाप,  हमारी मुहर, हमारी जीत का प्रतीक,  हमारे आरंभ का द्वार बुलन्द होना चाहिए ! बुलन्द होना चाहिए ! आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhur...

पल - Moment - Re Kabira 098

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-- o Re Kabira 098 o-- पल Moment पल पल पल पल पल कल पल अगल पल पल कल कल पल कल पल पिछल पल पल पल पल पल चल पल अचल पल पल चल चल पल चल पल अटल पल पल पल पल पल तल पल जबल पल पल तल तल पल तल पल सुतल पल पल पल पल पल भल पल जटल पल पल बल बल पल बल पल प्रबल पल पल पल पल पल छल पल उटल पल पल फल फल पल फल पल सफल पल पल पल पल पल कल कल पल पल पल पल पल पल चल चल पल don't ponder too much on the past and future live the present moment moments keep passing and still appear fixed and firm live in the present moment moments can appear as tall as mountains and as deep as oceans live in the present moment some moments can be strong, complex, and powerful live in the present moment moments can be treacherous, restless, and successful live in the present moment don't ponder too much on the past and future moment will come and go live the present moment आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira -- o Re Kabira 098 o--

रखो सोच किसान जैसी - Re Kabira 096

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-- o Re Kabira 096 o-- आचार्य रजनीष "ओशो" के प्रवचन से प्रेरित कविता रखो सोच किसान जैसी ! मेहनत से जोते प्यार से सींचे अड़चने पीछे छोड़े  उखाड़ फैंके खरपतवार दिखती जो दुश्मनों जैसी  खाद दे दवा दे दुआ दे दुलार दे रह खुद भूखे प्यासे  दिन रात पहरा दे ध्यान रखे मानो हो बच्चों जैसी  रखो सोच किसान जैसी ! कभी न कोसे न दोष दे अगर पौध न बड़े जल्दी  भूले भी न चिल्लाए पौधो पर चाहे हो फसल जैसी  न उखाड़ फेंके पौध जब तक उपज न हो पक्की  चुने सही फसल माटी-मौसम के मन को भाए जैसी  रखो सोच किसान जैसी ! पूजे धरती नाचे गाये उत्सव मनाए तब हो बुआई  दे आभार फिर झूमे मेला सजाये कटाई हो जैसी बेचे आधी, बोए पौनी, थोड़ी बाँटे तो थोड़ी बचाए अपने पौने से चुकाए कर्ज़े की रकम पर्वत जैसी  रखो सोच किसान जैसी ! प्रवृत्ति है शांत पर घबराते रजवाड़े नेता व शैतान कभी अच्छी हो तो कभी बुरी सही कमाई हो जैसी न कोई छुट्टी न कोई बहाना न कुछ बने मजबूरी  सदा रहती अगली फसल की तैयारी पहले जैसी ओ रे कबीरा,   रखो  सोच किसान जैसी ! रखो सोच किसान जैसी ! आशुतोष झुड़े...

शौक़ नहीं दोस्तों - Re Kabira 095

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-- o Re Kabira 095 o--   शौक़ नहीं दोस्तों वहाँ जाने का है मुझे शौक़ नहीं दोस्तों जहाँ ज़िस्म तो है सजे रूह नहीं दोस्तों कुछ सुनना है कुछ सुनाना भी दोस्तों जो कह न सकें गले लगाना भी दोस्तों तस्वीरों में सब ज़ख़्म छुपाते हैं दोस्तों अरसा हुआ मिले दर्द बताना है दोस्तों  ख़ुशियाँ अधूरी हैं जो बाँटी नहीं दोस्तों महफ़िलें बेगानी हैं जो तुम नहीं दोस्तों हमारी यादें हैं जो बारबार हँसाती दोस्तों मुलाक़ातें ही हैं जो क़िस्से बनाती दोस्तों वक़्त लगता थम गया था जो तब दोस्तों धुँधली यादों के पल जीना वो अब दोस्तों गलियारों में गूँजे अफ़साने हमारे दोस्तों दरवाज़ों पे भी हैं गुदे नाम तुम्हारे दोस्तों गले में हाथ डाल बेख़बर घूमना दोस्तों बेफ़िक्र टूटी चप्पल में चले आना दोस्तों गुनगुनाना धुने जो कभी भूली नहीं दोस्तों झूमें गानों पर जो फिर ले चले वहीं दोस्तों कुछ रास्ते है जहाँ बेहोशी में भी न गुमे दोस्तों कुछ गलियाँ हैं वहाँ हमारे निशाँ छुपे दोस्तों लोग कहते हैं फ़िज़ूल वक़्त गवाया दोस्तों कौन समझाए क्या कमाया है मैंने दोस्तों कल हो न हो आज तो मेरे है पास दोस्तों कोई हो न हो तुम मिलोगे है...

तुम कहते होगे - Re Kabira 093

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-- o Re Kabira 093 o-- मेरे प्रिय मित्र के पिता जी का निधन कुछ वर्षों पहले हो गया था.  ये कविता मेरे दोस्त के लिए, अंकल की याद में.... तुम कहते होगे जब भी तुम किसी परेशानी के हल खोजते होगे  जब भी कभी तुम थक-हार कर सुस्ताने बैठते होगे  जब भी तुम धुप में परछाई को पीछे मुड़ देखते होगे जब भी तुम आईने में खुद से चार बातें करते होगे  तुम कहते होगे, पापा मैं आपको ढूँढ़ता रह जाता हूँ ! जब आंटी की चाय उबल बार बार छलक जाती होगी  जब आंटी डाँटने से पहले कुछ सोच में पड़ जाती होंगी  जब आंटी दाल में नमक डालना बार बार भूल जाती होंगी  जब आंटी दीवार पर लगी तस्वीर में घंटों खो जाती होंगी  तुम कहते होगे, पापा मैं आपको ढूँढ़ता रह जाता हूँ ! जब बच्चों की आँखों अपनी तस्वीर देखते होगे  जब बच्चों की आदतों में अपने आप को पाते होगे  जब बच्चों की ज़िद के आगे न चाह के हारते होगे  जब बच्चों थोड़ी देर नज़र न आये तो घबराते होगे  तुम कहते होगे, पापा मैं आपको ढूँढ़ता रह जाता हूँ ! जब पत्नी की चिड़-चिड़ाहट में अपना बचपन देखते होगे  जब पत्नी और बच्चों की बात...