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पल - Moment - Re Kabira 098

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-- o Re Kabira 098 o-- पल Moment पल पल पल पल पल कल पल अगल पल पल कल कल पल कल पल पिछल पल पल पल पल पल चल पल अचल पल पल चल चल पल चल पल अटल पल पल पल पल पल तल पल जबल पल पल तल तल पल तल पल सुतल पल पल पल पल पल भल पल जटल पल पल बल बल पल बल पल प्रबल पल पल पल पल पल छल पल उटल पल पल फल फल पल फल पल सफल पल पल पल पल पल कल कल पल पल पल पल पल पल चल चल पल don't ponder too much on the past and future live the present moment moments keep passing and still appear fixed and firm live in the present moment moments can appear as tall as mountains and as deep as oceans live in the present moment some moments can be strong, complex, and powerful live in the present moment moments can be treacherous, restless, and successful live in the present moment don't ponder too much on the past and future moment will come and go live the present moment आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira -- o Re Kabira 098 o--

रखो सोच किसान जैसी - Re Kabira 096

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-- o Re Kabira 096 o-- आचार्य रजनीष "ओशो" के प्रवचन से प्रेरित कविता रखो सोच किसान जैसी ! मेहनत से जोते प्यार से सींचे अड़चने पीछे छोड़े  उखाड़ फैंके खरपतवार दिखती जो दुश्मनों जैसी  खाद दे दवा दे दुआ दे दुलार दे रह खुद भूखे प्यासे  दिन रात पहरा दे ध्यान रखे मानो हो बच्चों जैसी  रखो सोच किसान जैसी ! कभी न कोसे न दोष दे अगर पौध न बड़े जल्दी  भूले भी न चिल्लाए पौधो पर चाहे हो फसल जैसी  न उखाड़ फेंके पौध जब तक उपज न हो पक्की  चुने सही फसल माटी-मौसम के मन को भाए जैसी  रखो सोच किसान जैसी ! पूजे धरती नाचे गाये उत्सव मनाए तब हो बुआई  दे आभार फिर झूमे मेला सजाये कटाई हो जैसी बेचे आधी, बोए पौनी, थोड़ी बाँटे तो थोड़ी बचाए अपने पौने से चुकाए कर्ज़े की रकम पर्वत जैसी  रखो सोच किसान जैसी ! प्रवृत्ति है शांत पर घबराते रजवाड़े नेता व शैतान कभी अच्छी हो तो कभी बुरी सही कमाई हो जैसी न कोई छुट्टी न कोई बहाना न कुछ बने मजबूरी  सदा रहती अगली फसल की तैयारी पहले जैसी ओ रे कबीरा,   रखो  सोच किसान जैसी ! रखो सोच किसान जैसी ! आशुतोष झुड़े...

Re Kabira 084 - हिचकियाँ

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  --o Re Kabira 84 o-- हिचकियाँ     बहुत हिचकियाँ  आ रहीं है, आप इतना न मुझे याद किया करो बातें तो बहुत करते हो मेरी, कभी मिलने के बहाने बना लिया करो   लगता है जैसे कल ही की बात है, आप कहते थे बेवजह जश्न मना लिया करो आज बस जश्न की बातें हैं, कभी ख़ुशी कभी ग़म बाट लेने के बहाने ढूँढ लिया करो   याद तो होगा जब थोड़ा बहुत था, और हम कहते थोड़े में बहुत के मज़े लिया करो अब और-और की हो ड़ लगी है, कभी थोड़े छोटे-छोटे पल बुन लिया करो   चलते चलते हम आड़े-तिरछे रास्तों में भटकेंगे, तुम यूँ ही भटक कर फिर मिल जाया करो वैसे तो आज में जो जीने का असली मज़ा है, कभी कल को याद कर मुस्कुरा लिया करो   फूल चुन कर हमने गुलदस्ता बनाया है, भौरों को भी गुलिस्तान में मँडराने दिया करो आज हमारा सुंदर एक घरौंदा है, कभी बिना बता ए चले आ जाया करो   ढूँढते हैं हम ख़ुशियाँ गली गलियारों में, आगे बढ़ कर मुस्कुराहटें तोड़ लाया करो देखो तो हर तरफ़ अनेकों रंग है, कभी अपनी चहक से और रंग घोल जाया करो   हँसना है रोना है ...

Re Kabira 082 - बेगाना

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  --o Re Kabira 82 o-- बेगाना थोड़ी धूप थोड़ी छाँव का वादा था, थी चेहरे पर मुस्कराहट और मुश्किलें झेलने का इरादा था ढूंढ़ती रही आँखें खुशियाँ, पर आँसुओं का हर कदम सहारा था मुसाफिर बन निकल तो चला, अनजान कि जीवन भी एक अखाड़ा था  चारों तरफ़ थी ऊँची दीवारें, हर रुकावट से टकराने का वादा था, थी हिम्मत तूफानों से लड़ने की और चट्टानो को तोड़ कर जाने का इरादा था  एक तरफ जज़्बा, दूसरी ओर जोश का किनारा था पता नहीं कौन जीता और किसको हार का इशारा था पता था आसान नहीं होगा, पर आगे बढ़ते रहने का वादा था रोका पाँव के छालों ने और कटीले रास्तों ने पर न रुकने का इरादा था  मील के पत्थर तो मिले बहुत, पर मंज़िल अभी भी एक नज़ारा था थी मंज़िल हमसफ़र ...  ओ रे कबीरा बेहोश बिलकुल बेगाना था थोड़ी धूप थोड़ी छाँव का वादा था, थोड़ी धूप थोड़ी छाँव का वादा था आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira   --o Re Kabira 82 o--

Re Kabira 079 - होली 2023

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  --o Re Kabira 079 o-- बुरा न मानो होली है   छिड़को थोड़ा प्यार से तो सारे रंग ही रंग है जो ज़रा सी भी कड़वाहट न हो तो प्रेम अभंग है पकवानों में, मिठाईयों में, वैसे तो स्वादों  के  रंग ही रंग है  जो कोई द्वारे भूखा न सोये तो मानो जीती ये जंग है हँसते मुस्कराते चेहरों में खुशियों के रंग ही रंग है जो सभी के पुछ जायें अश्रु तो सच्ची उमंग है दूर-दूर तक गाने बजाने में जोश के रंग ही रंग है  जो हम अभिमान के नशे धुत्त न हों तो स्वीकार ये ढंग है  छेड़खानियों में, चुटकुलों में तो हास्य रंग ही रंग है  जो बदतमीज़ी जबरजस्ती हटा दी जाये तो असली व्यंग है? भीगे कपडों में लिपट पिचकारी में लादे सारे रंग ही रंग हैं  जो एक प्याली चाय और पकोड़े हो जायें तो दूर तक उड़े मस्ती की पतंग है  घर-परिवार, मित्र-दोस्तों के साथ त्योहार मानाने में रंग ही रंग है  जो थोड़ी भक्ति मिला दें, आस्था घोल दें तो होली नहीं सत संग है  हम सब दूर सही पर संग हैं तो हर तरफ़ रंग ही रंग है  जो रूठ कर घर में छुप कर बैठे तो जीवन बड़ा बेरंग है  गिले-शिकवे...

Re Kabira 074 - भाग भाग भाग

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  --o Re Kabira 074 o-- भाग भाग भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग भाग तेज़ भाग, भाग तेज़ भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग और तेज़ भाग, और तेज़ भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग इधर भाग, उधर भाग, बस भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग गिर फिर उठ, उठ फिर भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग ठोकर से न रुक, चोट से न चूक भाग भाग भाग, भाग भाग भाग दिन भर भाग, रात भर भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग चोरी कर भाग, धोखा देकर भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग कुचल कर भाग, धकेल कर भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग धुप में, ठण्ड में, बारिश में भाग   भाग भाग भाग, भाग भाग भाग बीमारी में भाग, लाचारी में भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग भूखे थके भाग, थके भूखे भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग सो जाग खा भाग, खा सो जाग भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग कोई न रोके, कोई न टोके भाग भाग भाग, भाग भाग भाग अकेले ही भाग, सबको ले भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग साँसे उखड़े भाग, टांगे टूटे भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग हँसते रोते भाग, रोते गाते भाग भाग भाग भाग, भाग भाग भाग भाग, भाग कहाँ पहुँचना हैं?, है पता तुझको? भाग, भाग क्या छूटा?, है पता तुझको? भाग भाग क्या पाया...

Re Kabira 073 - ख़रोंचे

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  --o Re Kabira 073 o-- ख़रोंचे किसको ज़रूरत है काँटीले तारों की, वैसे ही बहुत ख़रोंचों के निशाँ है जिश्म पर किसको चाहिये ख़्वाब भारी चट्टानों से, ज़िन्दगी की लहरों ने क्या कम तोड़ा है टकरा कर   किसको जाना धरा की दूसरी छोर तक, चार कदमों का फासला ही काफी है चलो अगर किसको उड़ना है आसमान के पार, बस कुछ बादल चाहिये हैं जो बरसे जम कर किसको बटोरना है दौलत सारे जहाँ की, चकाचक की होड़ मे सभी लगे हुये हैं देखो जिधर  किसको इकट्ठे करने सहानुभूति दिखाने वालों को, चारों ओर हज़ारों की भीड़ है सारे बुत मगर किसको चाह है किसी कि दुआ की, लगता है बद-दुआ ही है जिसका हुआ असर  किसको सहारा चाहिये मदहोशी का, ये अभिमान का ही तो नशा है जो चढ़े सर किसको हिसाब चाहिये हर पल का, थोड़ा वक़्त तो निकाल सकते हैं साथ एक पहर किसको लूटना है वाह-वाही सब की, कभी-कभी तो हम बात कर सकतें हैं तारीफ़ कर किसको पढ़ना है कवितायेँ शौर्य-सुंदरता की, बस एक शब्द ही काफी है शुक्रिया-धन्यवाद कर  किसको ज़रूरत है काँटीले तारों की, वैसे ही बहुत ख़रोंचों के निशाँ है जिश्म पर आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OR...

Re Kabira 072 - बातें हैं बातों को क्या !!!

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--o Re Kabira 072 o-- बातें हैं बातों को क्या  बातों बातों में निकल पड़ी बात बातों की,  कि बातों की कुछ बात ही अलग है  मुलाकातें होती हैं तो बातें होती हैं, फिर मुलाकातों की बातें होती है और मुलाकातें न हो तो भी बातें होती है देखे तो नहीं, पर बातों के पैर भी होते होंगे, कुछ बातें धीरे की जाती हैं, कुछ तेज़, कुछ बातें दबे पाँव निकल गयी तो दूर तक पहुँच जाती हैं  कुछ बातें दिल को छु कर निकल जाती हैं, और कभी सर के ऊपर से  कुछ बातें तो उड़ती-उड़ती, और कभी गिरती-पड़ती बातें आप तक पहुँच ही जाती है  बातों के रसोईये भी होते होंगे, जो रोज़ बातें पकाते हैं  कुछ लोग मीठी-मीठी बातें बनाते हैं, कुछ कड़वी बातें सुना जातें हैं कभी आप चटपटी बातें करते हैं, तो कभी मसालेदार बातें हो जाती हैं   और कुछ बातें तो ठंडाई जैसी होती है, दिल को ठंडक पहुंचा जाती हैं  वैसे तो अच्छी बातें, बुरी बातें, सही बातें और गलत बातें होती  हैं बातों का वजन भी होता है, कुछ हलकी होती हैं तो कुछ बातें भारी हो जाती हैं यूं तो कुछ लोग बातें छुपा लेते, तो...

Re Kabira 071 - कीमती बहुत हैं आँसू

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--o Re Kabira 071 o--   कीमती बहुत हैं आँसू  छलके तो ख़ुशी के, जो बहें तो दुःख के आँसू कभी मिलन के, तो कभी बिछड़ने के आँसू कभी सच बताने पर, कभी झूठ पकड़े जाने पर निकल आते आँसू कभी कमज़ोरी बन जाते, तो कभी ताक़त बनते आँसू कभी पीकर, तो कभी पोंछकर चलती ज़िन्दगी संग आँसू कभी लगते मोतियों जैसे, तो कभी दिखते ख़ून के आँसू कभी खुद को खाली कर देते, तो कभी सहारा बन जाते आँसू कभी दरिया बन जाते, तो कभी सैलाब बन जाते ऑंसू दिल झुमे तो, रब चूमे  तो पिघलते भी आँसू कभी डर के मारे,  कभी घबड़ाहट से आ जाते हैं आँसू गुस्से में राहत देते, धोखे में आहात देते ऑंसू कहते हैं बह जाने दो, दिल हल्का कर देंगे ये आँसू दर्द का , चोटों का , तकलीफों का आइना आँसू नफरत की ज़िद में, इश्क़ की लत जमते आँसू मजबूरी के, लाचारी के, जीत के, हार के होते आँसू सीरत तो नम होती इनकी, सूख भी जाते हैं आँसू कवितओं में, कहानियों में, शेऱ-शायरियों में बस्ते ऑंसू प्रेम के, भक्ति के, समर्पण के गवाह आँसू कभी छोटे, कभी बड़े, बहुत काम के हैं ऑंसू ओ रे कबीरा संजो के रखो, कीमती बहुत हैं आँसू आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley...

Re Kabira 0070 - अभी बाँकी है

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--o Re Kabira 070 o-- अभी बाँकी है कभी ठहाके कभी छुपी हुई मुस्कुराहटें, हँसते हँसते रोना अभी बाँकी है कुछ किस्से कुछ गप्पें, कुछ नयी और बहुत सी पुरानी कहानियाँ सुनना अभी बाँकी है  हमने तो आप लोगों को पूरी तरह परेशान करा, आपका थोड़ा तो बदला लेना अभी बाँकी  है  काफ़ी पिटाई करी खूब कान मरोड़े, अक्ल अभी भी हमको न आयी,  ...और डाँट खाना अभी बाँकी है हम लोगों को आपने जैसे तैसे निबटा दिया, हमारी अंग्रेज औलादों को निबटना अभी बाँकी है  खूब पैसे जोड़ लिए, खूब बचत कर ली, हमारे लिए ... अपने ऊपर कुछ खर्चना अभी बाँकी है   बहुत भागा-दौड़ी, चिंता विंता हो गयी, कुछ पल फुर्सत से बिताना अभी बाँकी है  कसर कोई छोड़ी नहीं हमारे लिए, हमारी परीक्षा तो अभी बाँकी है बहुत से चुटकुले, बहुत सी अटकलें, आपका बहुत सी महफ़िलों को चहकाना अभी बाँकी है अहिल्या  की कहानियाँ चल ही रही है, हमारे पप्पू के कारनामे सुनना अभी बाँकी है  अकेले चाय पीने में बिलकुल मज़ा नहीं आता, खूब चाय पीना अभी बाँकी है  आपकी मुस्कराहटों पर आपकी हँसी पर लाखों न्योछारावें अभी बाँकी है  बहुत सारा प्...

Re Kabira 056 - मेरी किताब अब भी ख़ाली

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--o Re Kabira 056 o-- मेरी किताब अब भी ख़ाली बारिष  की उन चार बूँदों का इंतेज़ार था  धरा को, जाने किधर चला गया काला बादल आवारा हो  आग़ाज़ तो गरजते बादलों ने किया था पूरे शोर से, आसमाँ में बिजली भी चमकी पुरज़ोर चारों ओर से  कोयल की कूक ने भी ऐलान कर दिया बारिष का, नाच रहे मोर फैला पंख जैसे पानी नहीं गिरे मनका  ठंडी हवा के झोंके से नम हो गया था खेति हर का मन,  टपकती बूँदों ने कर दिया सख़्त खेतों की माटी को नर्म मिट्टी की सौंधी ख़ुश्बू का अहसास मुझे  है  होने लगा, किताबें छोड़ कर बच्चों का मन भीगने को होने लगा  खुश बहुत हुआ जब देखा झूम कर नाचते बच्चों को, बना ली काग़ज़ की नाव याद कर अपने बचपन को  बहते पानी की धार में बहा दी मीठी यादों की नाव को,  सोचा निकल जाऊँ बाहर गीले कर लूँ अपने पाँव को  रुक गया, पता नहीं क्यों बेताब सा हो गया मेरा मन, ख़ाली पन्नो पर लिखने लगा कुछ शब्द हो के मगन  तेज़ थी बारिष, था शोर छत पर, था संगीत झिरती बूँदो...

Inspirational Poets - Ramchandra Narayanji Dwivedi "Pradeep"

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Ramchandra Narayanji Dwivedi "Pradeep" ( कवि प्रदीप) was an Indian poet and songwriter who gave patriotic Hindi movies some songs that became larger calls. He adopted the pen name "Pradeep" and became renowned as Kavi Pradeep. His most famous song is "Aye Mere Watan Ke Logo" (ऐ मेरे वतन के लोगों), sung by Lata Mangeshkar, made then Prime Minister of India Pt. Nehru cry. Sharing my favorite poems of " Pradeep " here: कभी धुप कभी छाँव सुख दुःख दोनों रहते  जिसमे  जीवन है वो गाँव कभी धुप कभी छाँव, कभी धुप तो कभी छाँव भले भी दिन आते जगत में, बुरे भी दिन आते कड़वे मीठे फल करम के, यहाँ सभी पते कभी सीधे कभी उलटे पड़ते, अजब समय के पाँव कभी धुप कभी छाँव, कभी धुप तो कभी छाँव क्या खुशियाँ क्या गम, ये सब मिलते बारी बारी मालिक की मर्ज़ी पे, चलती ये दुनिया सारी ध्यान से खेना जग में, बन्दे अपनी नाव कभी धुप कभी छाँव, कभी धुप तो कभी छाँव कभी कभी खुद से बात करो कभी कभी खुद से बात करो, कभी खुद से बोलो। अपनी नज़र में तुम क्या हो? ये मन की तरा...

Re Kabira 048 - डोर

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-o Re Kabira 048 o-- डोर जब पानी मुट्ठी से सरक जावे, केबल हतेली गीली रह जावे। निकल गयो वकत बापस नहीं आवे, तेरे हाथ अफसोस ठय जावे।। ज़िन्दगी मानो तो बहुत छोटी होवे, और मानो तो बहुतै लंबी हो जावे।   सोच संकोच में लोग आगे बड़ जावे, तोहे पास पीड़ा दरद धर जावे।। जब-तब याद किसी की आवे, तो उनकी-तुम्हारी उमर और बड़ जावे।  चाहे जो भी विचार मन में आवे, बिना समय गवाये मिलने चले जावे।।   डोर लम्बी होवे तो छोर नजर न आवे,  और  जब  समटे तो उलझ बो जावे।  बोले रे कबीरा नाजुक रिस्ते-धागे होवे, झटक से जे टूट भी  जावे।। *** आशुतोष झुड़ेले  *** -o Re Kabira 048 o--

Re Kabira 046 - नज़र

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-o Re Kabira 046 o-- नज़र  मुश्किलों की तो फ़ितरत है, आती ही हैं नामुनासिब वक़्त पर अरे रफ़ीक वक़्त गलत नहीं, थिरका भी है कभी तुम्हारी नज़्मों पर  होठों पर हो वो ग़ज़ल, जो ले जाती थी तुम्हें रंगो संग आसमाँ पर मुसीबतें नहीं हैं ये असल, वो ले रही इम्तेहाँ ज़माने संग ज़मीं पर डरते है हम अक्सर ये सोच कर, नज़र लग गई ख़ुशियों पर  बोले रे कबीरा क्या कभी लगी, मेरे ख़ुदा की नज़र बंदे पर आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira --o Re Kabira 046 o--

Re Kabira 0027 - Giving दान दिये धन ना घटै

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--o Re Kabira 0027 o--   चिड़ी चोंच भर लै गई, नदी घटया ना नीर।  दान दिये धन ना घटै, कह गए दास कबीर।।   Translation: Even if a bird takes mouthful of water, water in the river doesn't diminish. Kabir says your wealth will not diminish by your charity.   My Interpretation: One doesn't become rich by accumulating, but becomes richer by giving.     --o संत कबीर दास  o-- --o Sant Kabir Das o-- --o Re Kabira 0027 o--