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Re Kabira 012 - Relationships

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--o Re Kabira 01 2 o-- रिश्ते  सब को चाहिये आप से कुछ, आप को चाहिये सब कुछ। कमी नहीं है रिश्तों में, नहीं है कच्ची यारी। । नहीं करिओ किसी से अपेक्षा, न ही करो किसी की उपेक्षा। केवल सोच से कुछ नहीं, कर्म ही है सब कुछ। । गलती किस में देखे हो, ऊँगली उठाने से पहले सोचे हो। एक तेरी दूजी पाथर के ओर, पर तीन टटोले हथेली होर। । आप जो दे चले सब कुछ, मिल जाएगा सत्य सुख। सब को चाहिये आप से कुछ, आप को चाहिये सब कुछ। । ~आशुतोष --o Re Kabira 01 2 o-- #caste #class #religion #region #equality #bias #relationships #expectations #neglect 

Re Kabira 011 - हम सोचते हैं

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--o Re Kabira 011 o--   हम सोचते हैं  हम सोचते हैं, महात्मा पंडित क़ादरी दे गया और बाबा ठाकुर दलित । पर देख नहीं सकते ,चाचा के तब मजे थे और अब ताऊ-नेता-बहन-बहु के ।। हम लोग कल भी अकड़े थे और आज भी चौड़े हैं । हम पहले भी मंद थे और अब भी मूरख हैं ।। Translation: We are made to believe that Mahatma supported the nation being divided based on religion, and Ambedkar divided based on reservation. But we can't see that politicians took advantage at all times using the policy of divide & rule. And supporters followed them stubbornly without using any common sense at all. --o आशुतोष झुड़ेले o-- Ashutosh Jhureley  --o Re Kabira 011 o-- #caste #class #religion #region #equality #bias 

Re Kabira 010 - Martyr (पुष्प की अभिलाषा)

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--o Re Kabira 010 o-- पुष्प की अभिलाषा चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ, चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ, चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ, चाह नहीं देवों के सिर पर चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ, मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक! मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ पर जावें वीर अनेक! ---oo Pandit Makhan Lal Chaturvedi oo-- My Interpretation Nothing comes ahead of service of the motherland; it is a privilege to be in service of the motherland in one way or other. Translation I do not wish to adorn a beautiful maiden’s ornaments, I do not wish to be a gift for your beloved, I do not wish to be on the graves of great kings, I do not wish to be proudly placed on idols of Gods, I rather wish to be plucked to be spread on the paths, on which the braves martyrs walked to give their life for their motherland! --o Re Kabira 010 o-- #salute #india #indianarmy #terroristattack #makhanlalchaturvedi #RepublicDay #India # AzadiKaAm...

Re Kabira 009 - Greed

--o Re Kabira 009 o-- जियरा जाहुगे हम जानीं |  आवैगी कोई लहरि लोभ की बूडैगा बिनु पानी|   राज करता राजा जाइगा रूप दिपती रानी|  जोग करंता जोगी जाइगा कथा सुनंता ग्यानी|  चंद जाइगा सूर जाइगा जाइगा पवन औ पांनी|  कहै कबीर तेरा संत न जाइगा राम भगति ठहरानी|| -oo संत कबीर दास oo- When greed hits you like a wave You don't need water to drown. Whether it's a king on his throne Or a pretty queen, A chanting pundit Or a miracle-working yogi, They'll all die by drowning In a waterless sea. Who survives? The ones whose minds, Kabir says, Are tied to rocks.    --oo Sant Kabir Das oo-- --o Re Kabira 009 o--

Re Kabira 008 - Belief

--o Re Kabira 008 o-- मोको कहां ढूँढे रे बन्दे, मैं तो तेरे पास में | खोजि होए तुरत मिल जाउं, मैं तो हूं विश्वास में ||  ---oo Sant Kabir Das oo--- Translation: Where are you looking for me mate, I am close to you. You just need to discover, I am in your belief. My Interpretation: You can't find peace anywhere but in your own belief. These couplets were part of Kabir's Poem: मोको कहां ढूँढे रे बन्दे, मैं तो तेरे पास में ना तीरथ मे ना मूरत में, ना एकान्त निवास में ना मंदिर में ना मस्जिद में, ना काबे कैलास में मैं तो तेरे पास में बन्दे, मैं तो तेरे पास में ना मैं जप में ना मैं तप में, ना मैं बरत उपास में ना मैं किरिया करम में रहता, नहिं जोग सन्यास में नहिं प्राण में नहिं पिंड में, ना ब्रह्याण्ड आकाश में ना मैं प्रकुति प्रवार गुफा में, नहिं स्वांसों की स्वांस में खोजि होए तुरत मिल जाउं, इक पल की तालास में कहत कबीर सुनो भई साधो, मैं तो हूं विश्वास में --o Re Kabira 008 o--

Re Kabira 007 - Depth of Knowledge

-- o Re Kabira 007 o -- चली जो पुतली लौन की , थाह सिंधु का लेन | आपहू गली पानी भई , उलटी काहे को बैन || Translation: A figurine of salt entered the ocean to find its depth. It dissolved and became part of salty water, now who will come back to tell the depth of the ocean. --- oo Sant Kabir Das oo --- My Interpretation: Knowledge is like ocean. One who wants to find more, gets overwhelmed and merges in vast ocean of knowledge. We need someone (guru / teacher) to come out of those depths and share the wonderful world of knowledge and enlighten the world. -- o Re Kabira 007 o --

Re Kabira 006 - Words

--- o Re Kabira 006 o --- शब्द बराबर धन नहीं, जो कोई जाने बोल | हीरा तो दामो मिले, शब्द मोल न तोल || --- oo Sant Kabir Das oo --- Translation: Words are invalualble, only a good orator know it. You can buy jewels for any value, but it is very difficult to value words. My Interpretation: One should be very careful with what they speak and words they choose. Words have immense value, if used appropriately (at right time, at right place and at right location). Whether ones intentions are good or bad, can be achieved with right selection words.   --- o Re Kabira 006 o ---