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Re Kabira - सर्वे भवन्तु सुखिनः (Sarve Bhavantu Sukhinah)

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2023 was like a sine-wave, full of ups and downs. A lot happened throughout 2023, not sure whether it was a good year or a not-so-good year. But definitely a difficult one on both professional and personal front, with a lot to take on, look back and learn. At the very start of the year, lost my childhood friend to a sudden and unexpected heart attack. It took a toll on me. We spent a lot of time together since we were 4 years old. But we stopped talking to each other for a silly reason. Got back in contact again in 2022 and planned to celebrate our 20th Wedding Anniversaries' together, as it fell a few days apart. I was gutted.  As I promised myself to focus on health, I was doing well in controlling diabetes, exercising well, and following a good routine, and then out of nowhere ruptured my Achilles. Followed by a painful couple of months in bed, then started a long recovery process and still recovering. Not able to carry out activities or exercise to the level before accident and...

Re Kabira 0027 - Giving दान दिये धन ना घटै

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--o Re Kabira 0027 o--   चिड़ी चोंच भर लै गई, नदी घटया ना नीर।  दान दिये धन ना घटै, कह गए दास कबीर।।   Translation: Even if a bird takes mouthful of water, water in the river doesn't diminish. Kabir says your wealth will not diminish by your charity.   My Interpretation: One doesn't become rich by accumulating, but becomes richer by giving.     --o संत कबीर दास  o-- --o Sant Kabir Das o-- --o Re Kabira 0027 o--

Re Kabira 0026 - Partial Facts जान बात अधूरी

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--o Re Kabira 0026 o--   जान बात अधूरी, मत बनाओ प्रीत।   तब परछाई दिखे, जब जले है दीप।। jaan baat adhuri, mat banao preet tab parchai dekhe, jab jale hai deep     Translation: You shouldn't make up your mind and favour anyone by knowing partial facts. You only see shadow when there is light. --o आशुतोष झुड़ेले o-- --o Ashutosh Jhureley o-- --o Re Kabira 0026 o--

Re Kabira 0025 - Carving (Greed) रुखा सूखा खायके

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--o Re Kabira 0025 o-- रुखा सूखा खायके, ठण्डा पाणी पीब । देखि परायी चोपड़ी, मत ललचावै जीब ।। rukha sukha khayke, thanda paani peeb dekh paraye chopdi, mat lalchay jeeb Translation: What ever limited you have, consume and be satisfied. You should not crave for what others have. My Interpretation: Be happy with what you have... --o Sant Kabir Das o-- --o Re Kabira 0025 o--

Re Kabira 0024 - तू है गज

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--o Re Kabira 0024 o-- ।। तू है गज ।। तू है वन में, तू है मंदिर में... तू है सड़कों पे, तू है तमाशों में... तू है भजनों  में, तू है गीतों में... तू है कविता में, तू है चित्रोँ में। तू है वृक्षों का राजा, तू है दरियों का बादशाह... तू है राजाओं की शान, तू हैं महोट की जान... तू है जीत का प्रतीक, तू है क्रांति का गीत... तू है कबीर के दोहों में, तू है बुद्ध के बोलों में। तू है युद्ध की हूंकार, तू हैं शांति की पुकार... तू है ज्ञानियों के प्रेरणा, तू हैं ऋषियों की चेतना... तू है हर पूजा में, तू है हर जीबा में... तू है बचपन में, तू हैं अंतिम दर्शन में।  तू है ऐरावत, तू है महमूद... फिर क्यों... तू ही तड़पे, तू ही तरसे... तू है अब सपनों में, तू है अब मन में... तू हैं हमारी कोशिश, तू है हमारी कोशिश में। तू है गज, तू है गज, तू है गज। आशुतोष झुड़ेले --o Re Kabira 0024 o--

Re Kabira 0023 - शुभ दीपावली (2017)

--o Re Kabira 0023 o-- जय हो विजय हो, सुख हो समृद्धि हो |  उन्नत्ति हो लाभ हो, शांति हो मंगल हो | |  नव वर्ष हर्षित हो, दीपावली अतिशुभ हो |  मंगल ही मंगल हो, सब मंगलमय हो ||  Ashutosh Jhureley || शुभ दीपावली ||  || Wishing you a Happy Deepawali & New Year || --o Re Kabira 0023 o--

Re Kabira 0022 - शिकायत थी मुझको

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--o Re Kabira 0022 o-- शिकायत थी मुझको !!! शिकायत थी मुझे खुदसे, तुमसे और थी यारों से,  शिकायत थी मुझे माता-पिता से, भाई-बहन और थी रिश्तेदारों से, शिकयात थी मुझे साथी से, बच्चों और थी अपनों से, शिकयत थी मुझे वर्त्तमान से, भूत-भविष्य और थी समय से, शिकायत थी मुझे सभी से, आप से और थी भगवान से |  शिकायत पर हँस पड़ा रे कबीरा, मुस्कुराया और बोला, मूरख ! शिकायत करते हैं वो, पास है जिनके सब कुछ और सभी, शिकायत का मौका मिलता है उनको, जिनको पता नहीं कीमत शिकायत की | |  आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley It's a privilege to be able to complain... --o Re Kabira 0022 o--