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Re Kabira 044 - कुछ ख़ाली ख़याल

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--o Re Kabira 044 o-- कुछ ख़ाली ख़याल  ख़ाली कमरे की मेज़ पर बैठे-बैठे, कुछ ख़ाली ख़याल लिख पड़ा और ख़ाली ख़याली घोड़े दौड़ाने लगा, वो मंसूबे अब तक कामयाब हुए नहीं... ख़ाली तो प्याली थी, जिसमे अब ग़र्म काली बिना शक्कर की चाय है और ख़ाली वो मेज़बान भी था, जिसने रुक कर किया एहतिराम बुज़ूर्ग का ... ख़ाली तो काँच के ग्लास है, जो सजा रखे हैं किताबों के बीच उस अलमारी पर  और ख़ाली वो क़िताब के पन्ने भी है, जो किसी ने नहीं पढ़े अब तक ... वैसे ख़ाली तो पड़ी है वो महफ़िल की बोतल, बीवी का गुबार निकलेगा जिस पर  और ख़ाली वो सोफ़े का कोना भी होगा, जिस पर देखी थी दो-तीन सिनेमा कल ... ख़ाली तो घर भी लगता है, जब होते हैं बच्चे इधर-उधर  और ख़ाली वो आँगन वहां भी हैं, जहाँ घरवाली-घरवाले करते है इंतेज़ार त्योहरों पर  ... वहां ख़ाली तो दीवार है, जिसे सजना है एक तस्वीर से इस दिवाली पर  और ख़ाली वो चित्र भी है, जिसे रंगा नहीं रंगसाज़ ने अभी तक ... आज ख़ाली तो सड़क हैं, जहाँ ज़श्न मनता है किसी और की  जीत पर  और ख़ाली वो चौराहे-बाज़ार भी हैं, जहाँ से निकला था ज...

Re Kabira 043 - Happy Dussehra 2019

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--o Re Kabira 043 o-- दशहरा  करिश्मे तो रोज़ होते हैं हमारे सामने, नज़र अंदाज़ हो जाते हैं हमारी उम्मीदों की आड़ में .. कभी गर्मी में इंद्रधनुष के रंग और कभी बारिश के कीचड़ में कमल,  छोड़ कर छोटी-छोटी खुशियां खोये हुए हैं हम। भूल गए किंतना इंतज़ार करते थे त्योहारों का हम, अब बस सोचते हैं कब मिलनेगे कुछ क्षण जब छलके क़दम ... देखो बच्चों की शैतानी और याद करो पिटाई के बाद की मरहम,  जब तब नहीं रुके कदम तो फिर आज क्यों रुके हम। चलो आ गया दशहरा निकाल लो झालर-झंकार, जगमग कर लो अपना छोटा सा संसार ... मि टे  दोष हटे-क्रोध छटे-विवाद,  हर तरफ हो आशाओं की.. खुशिओं की जय जय कार ... दशहरा पर आप सब को शुभकामनायेँ ... --o आशुतोष झुड़ेले  o-- Happy Dussehra 2019 Ashutosh Jhureley --o Re Kabira 043 o--

Re Kabira 0042 - Lets Spread Colours.. of Love

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--o Re Kabira 0042 o-- होली है सब बोलें न चढ़े कोई रंग, जब हो हर तरफ लाल रंग।   छुप गया नीला आकाश, खो गया सतरंगी गगन।। बट गए नारंगी-हरे रंग, थक गये हम देख काले-सफ़ेद रंग।   दिखती  नहीं रंगीन वादियां, तितलियों ने खोया रसिक ढंग।। गर्म हो गया पवन का मन, लहरें भूल गयीं खनक छन-छन।     वापस आने दो लकड़पन, हस लो सोच के चंचल बचपन।।   लो जे आ गयी होली ले  के बसंत, हर तरफ होगा बस रंग ही रंग।   जो बोले न चढ़े  कोई रंग, चपेड़ दो उनको नीला-पीला  संग  प्रेम रंग।।  ।। होली है  ।। ।। Happy Holi  ।।   2019 Life is full of colors, don't let negativity take over and hide colors all around us.  On the occasion of Holi let's celebrate Spring and spread  colors  ..  colors  of love. --o आशुतोष झुड़ेले o-- Ashutosh Jhureley --o Re Kabira 0042 o--

Re Kabira 0041 - शुभ दीपावली

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--o Re Kabira 0041 o-- न हो कोई विकार, अच्छे हो हमारे विचार |  न हो कहीँ अंधकार, जगमग हो हमारा संसार ||  हो लक्ष्मी और सरस्वती, हम सभी के द्वार  |  हो स्वस्थ और सुरक्षित, हम सभी का परिवार ||   आशुतोष Ashutosh Jhureley || शुभ दीपावली ||  || Wishing you a Happy Deepawali & New Year || --o Re Kabira 0041 o--

Re Kabira 0040 - Switch

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--o Re Kabira 0040 o-- Switch lets walk lets walk, lets turn the engine off lets switch lets switch, lets switch to an electric car  turn off turn off, lets turn the switches off lets plant lets plan, lets plant as many trees recycle recycle, recycle all our waste less plastic less plastic, lets stop the use of plastic -- Aditi Jhureley --   --o Re Kabira 0040 o-- 

Re Kabira 0039 - Thistle

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--o Re Kabira 0039 o-- Thistle when my mother starts to feed, she drops out a seed when I start to grow, my spikes start to show somehow I show something very very pink and I don't know what its is, so I start to think if someone comes and I'm getting picked, I will get angry and they will get pricked when I get old, I start to droop down I will start to die with a big, unhappy frown -- Aadit Jhureley --   --o Re Kabira 0039 o--  

Re Kabira 0038 - भीड़ की आड़ में (Behind the Mob)

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--o Re Kabira 0038 o-- भीड़ की आड़ में ... भीड़ की आड़ में  भीड़ की आड़ में .. कभी मजहब कभी जात , कभी अल्लाह कभी राम के नाम पर। भीड़ की आड़ में .. कभी रंग कभी बोल, कभी सफेद कभी काले के नाम पर। भीड़ की आड़ में  .. कभी भक्ति कभी शक्ति, कभी जानवर कभी पत्थर के नाम पर। भीड़ की आड़ में  .. पहले 1947 फिर 84 89 92 01.. अब हर रोज किसी न किसी के नाम पर।   छुपा रहा है मानुष अपने पाप को, भीड़ की आड़ में हो के मदहोश। रे कबीरा कब समझे आप को, किसी न नहीं खुद का है दोस।। आशुतोष झुड़ेले --o Re Kabira 0038 o--  #stopmoblynching