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मैंने अपने आप से ही रिश्ता जोड़ लिया - Relationships - Hindi Poetry - Re Kabira 107

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-- o Re Kabira 107 o --  मैंने अपने आप से ही रिश्ता जोड़ लिया, शायद रिश्तों के मायने समझ पाऊँ, हो सकता है रिश्तेदारी निभाना सीख जाऊँ पापा बन हाथ पकड़ चलना सिखा दिया, पिता बन सही गलत में फर्क बता पाऊँ, बाप बन ज़माने से ख़ुद के लिए लड़ जाऊँ मम्मी बन जबरदस्ती रोटी का निवाला खिला दिया, माता राम बन सिर पर हाथ फेर चिंताएं भगा पाऊँ, माँ बन कान-मरोड़ गलत संगती से खींच लाऊँ  भाई बन साईकल पर आगे बैठा स्कूल पहुँचा दिया, बड़ा बन गले में हाथ डाल मेलों में घुमा पाऊँ, छोटा बन शैतानियों में चुपचाप साथ निभा जाऊँ  बहन बन रो धोके ही सही थोड़ा तो सभ्य बना दिया, दीदी बन सपनों को बार-बार बुनना  सिखा पाऊँ , छोटी बन बड़े होने मतलब आप समझ  जाऊँ  बच्चे बन खुद में कमियों को मानो दर्पण में दिखा दिया, बेटा बन खुद से और भी आगे बढ़ना सीख  पाऊँ , बेटी बन अपनी ज़िद मनवाने का गुर सीख  जाऊँ   दादा-दादी बन अपने अनुभवों को कहानियों में पिरो दिया, चाचा-मामा बन संबंधों में समझौते का महत्त्व सीख पाऊँ, जीजा-फूफा बन रिश्तों में सही दूरियों का मतलब बता जाऊँ दूर का सम्बन्धी बन नातो...

रंग कुछ कह रहे हैं - Holi - Colours Are Saying Something - Hindi Poetry - Re Kabira 106

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  -- o Re Kabira 106 o -- रंगf कुछ कह रहे हैं  मौसम में आज रंगों का मेला सजा,  रंग कुछ बोल रहे  हैं,  सुन लेते हैं ज़रा, बोले लाल गुलाल, जीवन शुभ है मैं शक्ति हूँ, मैं प्राण हूँ,  मैं आरम्भ हूँ, मैं अंत हूँ ! पीला बोला, ज्ञान सर्वोपरि है  मैं स्वर्ण हूँ, मैं शुद्ध हूँ,  मैं ज्ञान हूँ, मैं बुद्धि हूँ ! मुस्कुराया हरा, बोल पड़ा मैं ख़ुशी हूँ, मैं आनंद हूँ, मैं समृद्धि हूँ, मैं प्रकृति हूँ ! नीले ने मानो इशारा किया  मैं शांति हूँ, मैं सुकून हूँ, मैं अनंत हूँ, मैं शाश्वत हूँ ! नारंगी चुप न रह सका, बोला  मैं सूर्य हूँ, मैं शौर्य हूँ, मैं अटल हूँ, मैं अचल हूँ ! जामुनी ने नाचते-नाचते कहा मैं ख़्वाब हूँ, मैं कल हूँ, मैं करुणा हूँ, मैं प्रेरणा हूँ ! भगवा एक पहेली सबसे पूँछ पड़ा   बूझो, सफ़ेद पर चढ़ गए सारे रंग तो काला बना या फिर काले से उड़ गए सारे रंग तो श्वेत बचा? बोलै ओ रे कबीरा,  सफ़ेद और काले के बीच जीवन है रंगीन बड़ा, मौसम में आज रंगों का मेला सजा,  होली है, झूम ले रंगों के संग ज़रा होली है, बुरा नहीं मानेगा कोई रंग  होली...

सच्ची दौलत - Real Wealth - Hindi Poetry - Re Kabira 105

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-- o Re Kabira 105 o -- सच्ची दौलत भाग रहे हो तुम जहाँ की दौलत बटोरने, जो अपना नहीं उसे किसी तरह खचोटने, स्थिर नहीं रहता दिमाग शांत नहीं रहता मन,  रातों को नींद नहीं आती रहते दिन भर बेचैन,  कैसे नज़र-अंदाज़ होती देखो असली दौलत, सुनो! लुटा रहे हो, मिटा रहे हो सच्ची संपत्ति. पता नहीं अक्सर नाश्ता करना क्यों भूल जाते? घर का खाना फिकता क्यों ठंडे सैंडविच खाते? बच्चॉ को बड़ा होते बस सोते-सोते ही देख पाते? पत्नी के साथ शामों को पुराने शिकवों में गवाते? अपने लिए समय को ढेर में सबसे नीचे दबाते? सेहत को पीछे छोड़ खुद को दिन रात भगाते? भूलते उनको तुम्हारा रोज़ इंतज़ार करते  जो,  पीछे छूट जाते वो जिनके लिए गोते खाते हो, सुबह अँगड़ाई ले अपने लिए थोड़ा समय निकालो,  भाग्यशाली हो सेहतमंत हो जोतो दिल सींचो मनको,  दो बातें करो प्यार से देखो जो चौखट पर खड़ा हो,  जो अपने उन्हें पहचानो जो अपना उसे सम्भालो, भूख लगेगी, नींद आएगी, प्यार करोगे और पाओगे, मुस्कराओगे! खुशियाँ फैलाओगे सच्ची दौलत संजोते जाओगे...   'ओ रे कबीरा' सच्ची दौलत संजोते जाओगे !!! आशुतोष झुड़ेले Ashuto...

चौराहा - Midlife Crisis - Hindi Poetry - Re Kabira 104

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-- o Re Kabira 104 o --  चौराहा उम्र के उस पड़ाव पर खड़ा हूँ, कभी लगे बस बहुत हुआ, कभी आँखों में चुभे कमिया,  पर होठों से हमेशा निकले 'सब बढ़िया !' उम्र के उस पड़ाव पर खड़ा हूँ, चिंतित करे माता पिता का बुढ़ापा, साथ ही बेचैन करे बच्चों का बलवा,  पर करना है मुस्कुराने का दिखावा. उम्र के उस पड़ाव पर खड़ा हूँ, कभी कभी काम लगे बोझा, और रस्म-ओ-रिवाज ओछा,  है सोच पर फ़ायदे-नुक्सान का पोंछा.  उम्र के उस पड़ाव पर खड़ा हूँ, जब हर शिकायत बने उलझन, रोज़ बहसें होती और बातें कम, यूँ हरदम व्याकुल रहता मन. उम्र के उस पड़ाव पर खड़ा हूँ,  शौक-समय का बनता नहीं संतुलन, सपनों से मानो उड़ गये पसंदीदा रंग,  रहता उधेड़-बुन में दिल-दिमाग-मन.   उम्र के उस पड़ाव पर खड़ा हूँ, जब दिल बोलता चल ढूंढ़ बचपन,  दिमाग इशारा करे भुला नहीं लड़कपन,  पर क्या कर सकता हूँ अकड़े है बदन. उम्र के उस पड़ाव पर खड़ा हूँ, सोचता बहुत हो गया भाड़ में जाये सब,  करूँगा जो दिल चाहे अभी नहीं तो कब,  फिर नींद खुलती, लगता दिहाड़ी पर तब. उम्र के उस पड़ाव पर खड़ा हूँ , जैसे हज़ार टुकड़ो में बटा पड़ा हूँ,...

ये मेरे दोस्त - My Friends - Re Kabira 103

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  -- o Re Kabira 103 o --  ये मेरे दोस्त  ये पुराने दोस्त वो सयाने दोस्त हैं बड़े कमाल ये मेरे दोस्त यादों में बसे, क़िस्सों से जुड़े,  गुनगुनाते मुस्कुराते जहाँ चले झूमते चलें  ये दीवाने दोस्त वो मस्ताने दोस्त  हैं परवाने ये मेरे दोस्त  दूर हैं, पर लगते साथ हैं खड़े,  मधुमक्खियों की तरह घेर मुझे चलें  ये बेमिसाल दोस्त वो बेफ़िक्र दोस्त  हैं बेबाक ये मेरे दोस्त जमाने से लड़ें, किसी की न सुने,  हाथ में हाथ डाल गलियारों में चलें ये कामयाब दोस्त  वो मशहूर दोस्त हैं दूर तक मा'रूफ़ ये मेरे दोस्त ऊँचे पायदानों पे चढ़ें, आसमान में उड़े,  जब हमारे साथ चले ज़मीन पर ये चले...

क्यों न? - Why Not? - Re Kabira 102

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-- o Re Kabira 102 o -- क्यों न ? क्यों न ?  क्यों न ख़ुद को ढूंढ लिया जाए? इससे पहले वो कहीं गुम हो जाए, कहाँ अकेले गुम होते जा रहे हो, किधर धुंध में खोते जा रहे हो,  चलते-चलते ख़ुद  को  ही न भूल जाओ, भागते-भागते आप को न पीछे छोड़ जाओ, क्यों बीती बातों से इतना परेशान हो? क्यों अपने आप से इतना नाराज़ हो? क्यों न ख़ुद को पहचान लिया जाए? इससे पहले वो कोई अनजान हो जाए, कहाँ कोई तुम्हे समझ पायेगा, कोई और तुम्हे क्या बतलाएगा, तरह-तरह के भेष न बदलते जाओ, जगह-जगह अकेले न भटकते रह जाओ, क्यों दुसरे के नज़रिये को अपनाते हो? क्यों अपने आप पर इतने कठोर हो जाते हो? क्यों न खुद को माफ़ कर दिया जाए? इससे पहले वो सोच का कैदी बन जाए, कुछ गलितयाँ तो करोगे नहीं खुदा हो, कोई कहाँ मिलेगा जो अमोघ-अभ्रान्त हो, धीरे-धीरे ही सही ग़लतियों से सीखते जाओ, बार-बार ही सही सुधार आगे बढ़ते जाओ, क्यों रुकावटों  से  ग़लतियों से हारे लगते हों? क्यों अपने आप को सज़ा देने उतारू दिखते हो? क्यों न ख़ुद से समझौता कर लिया जाए? इससे पहले वो बड़ा मसला बन जाए, कहाँ औरों के सामने रोना रोते हो, कोई हँसाए...

लिखते रहो Keep Writing - Re Kabira 101

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-- o Re Kabira 101 o-- लिखते रहो लिखते रहो, शब्द शक्तिशाली हैं  तो अजब मायावी भी हैं  शब्दों में ध्यान  की  ताक़त है तो ज्ञान  की  चाहत भी है  लिखते रहो, शब्द प्रहार कर देते हैं  तो वहीं मरहम् भी देते हैं शब्दों में मन की खटास है तो दिल की मिठास भी है लिखते रहो, शब्द मसले बन जाते हैं तो ये मसलों को हल भी कर जाते हैं  शब्दों से दीवारें खड़ी हो जातीं हैं तो पहाड़ मिट्टी में भी मिल जाते हैं लिखते रहो, शब्द लोगों को जगा सकते हैं तो आसानी से बँटवाते भी है शब्दों में बहकाने की, भड़काने की फ़ितरत है  तो मोहब्बत फैलाने की आदत भी है लिखते रहो, शब्द तुम्हें बाँध देते हैं तो बन्धनों से मुक्त भी करते हैं शब्दों से ही गीत है प्रीत है मीत है तो भक्ति की शक्ति भी है लिखते रहो, शब्द ही अल्लाह और राम हैं तो रावण और शैतान भी हैं  शब्दों में राम है श्याम है तो सियाराम राधेश्याम भी है लिखते रहो, शब्द बेज़ुबान की जान हैं तो इनके बिना ज़ुबानी बेजान हैं शब्दों में ही तो बड़े-बड़े गुमनाम हैं तो ये कितनों की पहचान भी हैं  लिखते रहो, शब्द ही तुम्हारे व्...