Re Kabira 055 - चिड़िया
--o Re Kabira 055 o--
चिड़िया
इधर फुदकती उधर चहकती,डर जाती फिर उड़ जाती
तिनके चुनती थिगड़े बुनती, झट से पेड़ों में छुप जाती
सुबह होते शाम ढलते, मीठे गीत फिर सुनाने आ जाती
दाना चुगने पानी पीने, वापस फिर मेरे आँगन में आ जाती
कभी बारिश कभी तूफान, भाँपते जाने कहाँ गायब हो जाती
कभी चील कभी कौये, देख क्यों तुम घबड़ा सी जाती
बच्चे ढूंढे आँखें खोजें, जिस दिन तुम कहीं और चली जाती
दाना चुगने पानी पीने, वापस फिर मेरे आँगन में आ जाती
गेहूँ खाती टिड्डे खाती, बागीचे के किसी कोने में घर बनाती
तुम लाती चिड़ा लाता, बारी-बारी तुम चूजों को खिलाती
खाना सिखाती गाना सिखाती, फिर बच्चों संग उड़ जाती
दाना चुगने पानी पीने, वापस फिर मेरे आँगन में आ जाती
सबेरे जाती साँझ आती, फिर झाड़ी में गुम हो जाती
जल्दी उठाती देर तक बहलाती, जाने कब तुम सोने को जाती
कुछ दिन कुछ हफ्ते, तुम मेरे घर की रौनक बन जाती
दाना चुगने पानी पीने, वापस फिर मेरे आँगन में आ जाती
आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
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