Re Kabira 059 - क्या ढूँढ़ते हैं ?
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क्या ढूँढ़ते हैं ? |
आप मेरी सुकून की नींद को मौत कहते हैं,
और फिर अपने ख्वाबों मे मुझे ढूँढ़ते हैं
अजीब इत्तेफ़ाक़ है की आप मुझसे भागते हैं,
और फिर साथ फुर्शत के दो पल ढूँढ़ते हैं
कभी आप मेरे काम तो तमाशा कहते हैं,
और फिर कदरदानों की अशर्फियाँ ढूँढ़ते हैं
देखिये आप मुझे वैसे तो दोस्तों में गिनते हैं,
और फिर मुझमें अपने फायदे ढूँढ़ते हैं
कभी आप मेरे साथ दुनिया से लड़ने चलते हैं,
और फिर दुश्मनों में दोस्त ढूँढ़ते हैं
ओ रे कबीरा ! लिखते नज़्म गुमशुम एक कोने में,
और फिर भीड़ में चार तारीफें ढूँढ़ते हैं