Re Kabira 082 - बेगाना
--o Re Kabira 82 o--
बेगाना
थोड़ी धूप थोड़ी छाँव का वादा था,
थी चेहरे पर मुस्कराहट और मुश्किलें झेलने का इरादा था
ढूंढ़ती रही आँखें खुशियाँ, पर आँसुओं का हर कदम सहारा था
मुसाफिर बन निकल तो चला, अनजान कि जीवन भी एक अखाड़ा था
चारों तरफ़ थी ऊँची दीवारें, हर रुकावट से टकराने का वादा था,
थी हिम्मत तूफानों से लड़ने की और चट्टानो को तोड़ कर जाने का इरादा था
एक तरफ जज़्बा, दूसरी ओर जोश का किनारा था
पता नहीं कौन जीता और किसको हार का इशारा था
पता था आसान नहीं होगा, पर आगे बढ़ते रहने का वादा था
रोका पाँव के छालों ने और कटीले रास्तों ने पर न रुकने का इरादा था
मील के पत्थर तो मिले बहुत, पर मंज़िल अभी भी एक नज़ारा था
थी मंज़िल हमसफ़र ... ओ रे कबीरा बेहोश बिलकुल बेगाना था
थोड़ी धूप थोड़ी छाँव का वादा था,
थोड़ी धूप थोड़ी छाँव का वादा था
आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
@OReKabira
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