Re kabira 085 - चुरा ले गए

 --o Re Kabira 85 o--

चुरा ले 


हमारे जीवन के कुछ अनुभव ऐसे होते हैं जो रह-रह कर आपको परेशान करते हैं। आप चाह कर भी उन्हें नज़र अंदाज़ नहीं कर पाते, वो वापस किसी न किसी रूप में उभर आते हैं। समझ नहीं आता कि उन्हें कैसे भूला जाए, कैसे पीछे छोड़ कर आगे बढ़ा जाए। 

धोखा ! छल ! किसी परिचत द्वारा, किसी मित्र द्वारा कुछ ऐसा कर जाता है। मानो जैसे किसी जानने वाले ने आपके घर में चोरी कर ली हो। आपको पता है किस ने चोरी की है, शायद बीमा / insurance से माल की भरपाई तो हो जाये, पर आपकी प्रिय वस्तु कभी वापस नहीं आएगी। भरोसा एक ऐसी ही प्रिय वस्तु है, उसकी कोई कीमत नहीं लगायी जा सकती। 

धोखा, छल आपके आत्मविश्वास को तोड़ देता है, आत्मशक्ति को झंझोड़ देता है। आप परेशान रहते हो पर आपको धोखा देने वाला व्यक्ति आगे बढ़ जाता है, किसी और को अपनी आदत से क्षति पहुंचाने। आप समझ नहीं पाते क्या करें? ऐसी स्थिति को व्यक्त करती एक कविता - "चुरा ले गए"

चुरा ले 

चुरा ले गए सुबह से ताज़गी,
कुछ लोग शाम से सादगी चुरा ले गए

चुरा ले गए ज़िन्दगी से दिल्लगी,
कुछ लोग बन्दे से बंदगी चुरा ले गए

चुरा ले गए आईने से अक्स,
कुछ लोग मेरी परछाईं चुरा ले गए

चुरा ले गए दिल का चैन,
कुछ लोग आँसुओं से नमी चुरा ले गए

चुरा ले गये बादलों से सतरंग,
कुछ लोग पहली बारिश की ख़ुशबू चुरा ले गए

चुरा ले गए बागीचे से फूल,
कुछ लोग आँगन की मिट्टी ही चुरा ले गए

चुरा ले गए जिश्म से रूह,
कुछ लोग कब्र से लाश चुरा ले गए

चुरा के आए ख़ाक में डूबी चौखट पर,
 ओ रे कबीरा !
कुछ लोग चार आने का हिसाब ले गए
चुरा ले ए...


आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
@OReKabira

 --o Re Kabira 85 o--

Most Loved >>>

लिखते रहो Keep Writing - Re Kabira 101

पल - Moment - Re Kabira 098

कहाँ है पवन? - Re Kabira 099

बुलन्द दरवाज़ा - Re Kabira 100

Re Kabira 055 - चिड़िया

Re Kabira 0025 - Carving (Greed) रुखा सूखा खायके

रखो सोच किसान जैसी - Re Kabira 096

Re Kabira 0062 - पतझड़ के भी रंग होते हैं

शौक़ नहीं दोस्तों - Re Kabira 095