Re Kabira 087 - पहचानो तुम कौन हो?
बिछड़ गया था
अपनी माँ से घने जंगल में जो,
शेरनी का
दूध पीता शावक था वो,
भूखा-प्यासा
गिर पड़ा थका-माँदा मूर्क्षित हो,
मिल गया भेड़
के झुंड को...
अचंभित भेड़
बोली - पहचानो
तुम कौन हो?
चहक उठा
मुँह लगा दूध भेड़ का ज्यों,
बड़ा होने
लगा मेमनो के संग घास चरता त्यों,
फुदकता सर-लड़ाता
मिमियता मान भेड़ खुद को,
खेल-खेल में
दबोचा मेमने को...
घबराकर मेमना
बोला- पहचानो तुम कौन हो?
सर झुका घास-फूस
खाता, नहीं उठाता नज़रें कभी वो,
सहम कर
भेड़ों की भीड़ संग छुप जाता भांप खतरा जो,
किसी रात
भेड़िया आया चुराने मेमनो को,
भाग खड़ा हुआ
भेड़िया देख शेर के बच्चे को..
ख़ुशी से
मेमने बोले - पहचानो तुम कौन हो?
जवान हुआ, बलवान
हुआ, दहाड़ने लगा, लगा मूंछे तानने वो,
थोड़ा
हिचकिचाने लगीं भेड़ देख उसके पंजों
को,
भरी दोपहरी
एक और शेर आया भोजन बनाया दो भेड़ों को,
और घूरता
रहा मिमयाते भेड़ की रूह वाले इस शेर को
ग़ुस्से में
दहाड़ा बोला - पहचानो तुम कौन हो?
भ्रमित-परेशान
पूछा अपनी माँ
से कि बताओ तुम मेरी कौन हो?
दिन भर
घूमता रहा, भटकता रहा कुछ समझ न आया पूछे किसको?
लपका शिकारी
शेर घसीट ले गया पानी किनारे उसको,
गरजा
गुर्राया, देख अपना अक्स, अपनी
परछाई.. और मुझको
गर्दन दबोच
बोला - पहचानो तुम कौन हो?
क्या संदेह?
क्यों संदेह है? क्यों ख़ुद पर शंका करते हो?
जैसे था शेर
भेड़ नहीं वो, पहचानो तुम कौन हो?
दृढ़ हो सबल
हो देखो अंदर तो, क्यों मामूली ख़ुद को समझते हो?
सुनो अंतर-आत्मा
की आवाज़ को, पहचानो तुम कौन हो?
ओ रे कबीरा
बोला - पहचानो तुम कौन हो?
पहचानो तुम
कौन हो, पहचानो तुम कौन हो?
आशुतोष झुड़ेले