तुम कहते होगे - Re Kabira 093

-- o Re Kabira 093 o--

तुम कहते होगे

मेरे प्रिय मित्र के पिता जी का निधन कुछ वर्षों पहले हो गया था. 
ये कविता मेरे दोस्त के लिए, अंकल की याद में....

तुम कहते होगे

जब भी तुम किसी परेशानी के हल खोजते होगे 
जब भी कभी तुम थक-हार कर सुस्ताने बैठते होगे 
जब भी तुम धुप में परछाई को पीछे मुड़ देखते होगे
जब भी तुम आईने में खुद से चार बातें करते होगे 
तुम कहते होगे, पापा मैं आपको ढूँढ़ता रह जाता हूँ !

जब आंटी की चाय उबल बार बार छलक जाती होगी 
जब आंटी डाँटने से पहले कुछ सोच में पड़ जाती होंगी 
जब आंटी दाल में नमक डालना बार बार भूल जाती होंगी 
जब आंटी दीवार पर लगी तस्वीर में घंटों खो जाती होंगी 
तुम कहते होगे, पापा मैं आपको ढूँढ़ता रह जाता हूँ !

जब बच्चों की आँखों अपनी तस्वीर देखते होगे 
जब बच्चों की आदतों में अपने आप को पाते होगे 
जब बच्चों की ज़िद के आगे न चाह के हारते होगे 
जब बच्चों थोड़ी देर नज़र न आये तो घबराते होगे 
तुम कहते होगे, पापा मैं आपको ढूँढ़ता रह जाता हूँ !

जब पत्नी की चिड़-चिड़ाहट में अपना बचपन देखते होगे 
जब पत्नी और बच्चों की बातों में अपना लड़कपन देखते होगे 
जब पत्नी के साथ तस्वीरों में अपना जोबन देखते होगे
जब पत्नी की चिंतित बातों में अपना बूढ़ा मन देखते होगे
तुम कहते होगे, पापा मैं आपको ढूँढ़ता रह जाता हूँ !

तुम कहते होगे, पापा मैं आपको ढूँढ़ता रह जाता हूँ और बताना चाहता हूँ ..
कि एक बार फिर आपका हाथ पकड़ना चाहता हूँ  
कि एक बार फिर आपकी डाँट खाना चाहता हूँ 
कि एक बार फिर आपकी कहानियाँ सुनना चाहता हूँ 
कि एक बार फिर आपके चुटकलों पर हँसना चाहता हूँ 

तुम कहते होगे, पापा मैं आपको ढूँढ़ता रह जाता हूँ और बताना चाहता हूँ ..
कि मम्मी की बातें में रोज़ आपको देखना चाहता हूँ 
कि बच्चों को प्यार आप जैसा करना चाहता हूँ 
कि पत्नी के साथ आप जैसी खूब यादें बनाना चाहता हूँ 
कि सबकी उम्मीदों पर आप जैसा उतरना चाहता हूँ 

तुम कहते होगे, पापा मैं आपको ढूँढ़ता रह जाता हूँ..
मम्मी की बातों में, 
बच्चों की आँखों में, 
पत्नी की उम्मीदों में 
अपनी रूह अपनी अंतरात्मा में, 
अपनी रूह अपनी अंतरात्मा में, आप को पाता हूँ 
अपने आप में, ख़ुद में, आप को पाता हूँ

तुम कहते होगे,पापा में आप जैसा बनाना चाहता हूँ
तुम कहते होगे,पापा मैं आपको ढूँढ़ता रह जाता हूँ


आशुतोष झुड़ेले
Ashutosh Jhureley
@OReKabira

-- o Re Kabira 093 o--

 

Most Loved >>>

सच्ची दौलत - Real Wealth - Hindi Poetry - Re Kabira 105

चौराहा - Midlife Crisis - Hindi Poetry - Re Kabira 104

पल - Moment - Hindi Poetry - Re Kabira 098

क्यों न? - Why Not? - Re Kabira 102

Re Kabira - सर्वे भवन्तु सुखिनः (Sarve Bhavantu Sukhinah)

Re Kabira 0025 - Carving (Greed) रुखा सूखा खायके

Re Kabira 0067 - लता जी का तप

Re Kabira 053 - बाग़ीचे की वो मेज़

Inspirational Poets - Ramchandra Narayanji Dwivedi "Pradeep"