Re Kabira 0038 - भीड़ की आड़ में (Behind the Mob)
--o Re Kabira 0038 o-- भीड़ की आड़ में ... भीड़ की आड़ में भीड़ की आड़ में .. कभी मजहब कभी जात , कभी अल्लाह कभी राम के नाम पर। भीड़ की आड़ में .. कभी रंग कभी बोल, कभी सफेद कभी काले के नाम पर। भीड़ की आड़ में .. कभी भक्ति कभी शक्ति, कभी जानवर कभी पत्थर के नाम पर। भीड़ की आड़ में .. पहले 1947 फिर 84 89 92 01.. अब हर रोज किसी न किसी के नाम पर। छुपा रहा है मानुष अपने पाप को, भीड़ की आड़ में हो के मदहोश। रे कबीरा कब समझे आप को, किसी न नहीं खुद का है दोस।। आशुतोष झुड़ेले --o Re Kabira 0038 o-- #stopmoblynching