Re Kabira 072 - बातें हैं बातों को क्या !!!
--o Re Kabira 072 o-- बातें हैं बातों को क्या बातों बातों में निकल पड़ी बात बातों की, कि बातों की कुछ बात ही अलग है मुलाकातें होती हैं तो बातें होती हैं, फिर मुलाकातों की बातें होती है और मुलाकातें न हो तो भी बातें होती है देखे तो नहीं, पर बातों के पैर भी होते होंगे, कुछ बातें धीरे की जाती हैं, कुछ तेज़, कुछ बातें दबे पाँव निकल गयी तो दूर तक पहुँच जाती हैं कुछ बातें दिल को छु कर निकल जाती हैं, और कभी सर के ऊपर से कुछ बातें तो उड़ती-उड़ती, और कभी गिरती-पड़ती बातें आप तक पहुँच ही जाती है बातों के रसोईये भी होते होंगे, जो रोज़ बातें पकाते हैं कुछ लोग मीठी-मीठी बातें बनाते हैं, कुछ कड़वी बातें सुना जातें हैं कभी आप चटपटी बातें करते हैं, तो कभी मसालेदार बातें हो जाती हैं और कुछ बातें तो ठंडाई जैसी होती है, दिल को ठंडक पहुंचा जाती हैं वैसे तो अच्छी बातें, बुरी बातें, सही बातें और गलत बातें होती हैं बातों का वजन भी होता है, कुछ हलकी होती हैं तो कुछ बातें भारी हो जाती हैं यूं तो कुछ लोग बातें छुपा लेते, तो कुछ बातों को रखकर चले जाते हैं, कोई दबा देता है, और फिर कोई आकर बातों तो उछाल ज