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क्यों न? - Why Not? - Re Kabira 102

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-- o Re Kabira 102 o -- क्यों न ? क्यों न ?  क्यों न ख़ुद को ढूंढ लिया जाए? इससे पहले वो कहीं गुम हो जाए, कहाँ अकेले गुम होते जा रहे हो, किधर धुंध में खोते जा रहे हो,  चलते-चलते ख़ुद  को  ही न भूल जाओ, भागते-भागते आप को न पीछे छोड़ जाओ, क्यों बीती बातों से इतना परेशान हो? क्यों अपने आप से इतना नाराज़ हो? क्यों न ख़ुद को पहचान लिया जाए? इससे पहले वो कोई अनजान हो जाए, कहाँ कोई तुम्हे समझ पायेगा, कोई और तुम्हे क्या बतलाएगा, तरह-तरह के भेष न बदलते जाओ, जगह-जगह अकेले न भटकते रह जाओ, क्यों दुसरे के नज़रिये को अपनाते हो? क्यों अपने आप पर इतने कठोर हो जाते हो? क्यों न खुद को माफ़ कर दिया जाए? इससे पहले वो सोच का कैदी बन जाए, कुछ गलितयाँ तो करोगे नहीं खुदा हो, कोई कहाँ मिलेगा जो अमोघ-अभ्रान्त हो, धीरे-धीरे ही सही गलितयों से सीखते जाओ, बार-बार ही सही सुधार आगे बढ़ते जाओ, क्यों रुकावटों  से  गलितयों से हारे लगते हों? क्यों अपने आप को सज़ा देने उतारू दिखते हो? क्यों न ख़ुद से समझौता कर लिया जाए? इससे पहले वो बड़ा मसला बन जाए, कहाँ औरों के सामने रोना रोते हो, कोई हँसाएगा नहीं...