Re Kabira 048 - डोर
-o Re Kabira 048 o-- डोर जब पानी मुट्ठी से सरक जावे, केबल हतेली गीली रह जावे। निकल गयो वकत बापस नहीं आवे, तेरे हाथ अफसोस ठय जावे।। ज़िन्दगी मानो तो बहुत छोटी होवे, और मानो तो बहुतै लंबी हो जावे। सोच संकोच में लोग आगे बड़ जावे, तोहे पास पीड़ा दरद धर जावे।। जब-तब याद किसी की आवे, तो उनकी-तुम्हारी उमर और बड़ जावे। चाहे जो भी विचार मन में आवे, बिना समय गवाये मिलने चले जावे।। डोर लम्बी होवे तो छोर नजर न आवे, और जब समटे तो उलझ बो जावे। बोले रे कबीरा नाजुक रिस्ते-धागे होवे, झटक से जे टूट भी जावे।। *** आशुतोष झुड़ेले *** -o Re Kabira 048 o--