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पल - Moment - Re Kabira 098

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-- o Re Kabira 098 o-- पल Moment पल पल पल पल पल कल पल अगल पल पल कल कल पल कल पल पिछल पल पल पल पल पल चल पल अचल पल पल चल चल पल चल पल अटल पल पल पल पल पल तल पल जबल पल पल तल तल पल तल पल सुतल पल पल पल पल पल भल पल जटल पल पल बल बल पल बल पल प्रबल पल पल पल पल पल छल पल उटल पल पल फल फल पल फल पल सफल पल पल पल पल पल कल कल पल पल पल पल पल पल चल चल पल don't ponder too much on the past and future live the present moment moments keep passing and still appear fixed and firm live in the present moment moments can be as tall as mountains and as deep as oceans live in the present moment some moments can be strong, complex, and powerful live in the present moment moments can be treacherous, restless, and successful live in the present moment don't ponder too much on the past and future moment will come and go live the present moment आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira -- o Re Kabira 098 o--

चलो पवन को ढूँढ़ते हैं - Re Kabira 097

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-- o Re Kabira 097 o-- #search4pawan चलो पवन को ढूँढ़ते हैं, चलो अपने दोस्त का पता लगाते हैं,  कल तो वो यहीं था,  चार दिन पहले ही तो बात हुई, थोड़ा समय हुआ मुलाकात हुई, आज ऎसी क्या बात हो गई? अचानक पता चला, अख़बारों में भी ख़बर छपी, फ़ोन बजे सन्देश पढ़े, लतापा है गुमशुदा है, यहाँ देखो वहाँ पूछो, किसी को तो इसका पता हो? सब हैरान, सब परेशान, ऐसे कैसे बिना बताये चला गया वो, कभी गलत कदम नहीं उठा सकता जो, जहाँ मिले थोड़ा सुकून वहीँ, है यकीन कि है वो यहीं कहीं, किसी को कोई शक संदेह तो नहीं? अफ़वाहें उड़ी अटकलें लगी, अनुमान लगे धारणाएँ बनी, ख्याल बुने विचार घड़े, कुछ सच्ची अधिक्तर झूठी बातें पता चलीं, कुछ वाद हुए अधिक्तर विवाद बने, कुछ आगे बड़े अधिक्तर अभी भी क्यों पीछे खड़े? लड़ रहा है वो अपने हिस्से की लड़ाई, कभी छुपाई कभी मुस्कुराते हुए बताई, अन्वेषण अन्वीक्षण विवेचन आलोचन जाँच-पड़ताल, ये सब तो हो रहा है और होता रहेगा, जो हमारे वश में है चलो वो करते हैं य फिर हाथ पर हाथ धरे बैठे रह सकते हैं? बोले ओ रे कबीरा, वो तो अभी गुमशुदा है, तुम  सब   अब तक  थे  लापता, मिल ही गए हो तो, चलो हल्ला मचाके पवन को  ढूँढ़त

रखो सोच किसान जैसी - Re Kabira 096

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-- o Re Kabira 096 o-- आचार्य रजनीष "ओशो" के प्रवचन से प्रेरित कविता रखो सोच किसान जैसी ! मेहनत से जोते प्यार से सींचे अड़चने पीछे छोड़े  उखाड़ फैंके खरपतवार दिखती जो दुश्मनों जैसी  खाद दे दवा दे दुआ दे दुलार दे रह खुद भूखे प्यासे  दिन रात पहरा दे ध्यान रखे मानो हो बच्चों जैसी  रखो सोच किसान जैसी ! कभी न कोसे न दोष दे अगर पौध न बड़े जल्दी  भूले भी न चिल्लाए पौधो पर चाहे हो फसल जैसी  न उखाड़ फेंके पौध जब तक उपज न हो पक्की  चुने सही फसल माटी-मौसम के मन को भाए जैसी  रखो सोच किसान जैसी ! पूजे धरती नाचे गाये उत्सव मनाए तब हो बुआई  दे आभार फिर झूमे मेला सजाये कटाई हो जैसी बेचे आधी, बोए पौनी, थोड़ी बाँटे तो थोड़ी बचाए अपने पौने से चुकाए कर्ज़े की रकम पर्वत जैसी  रखो सोच किसान जैसी ! प्रवृत्ति है शांत पर घबराते रजवाड़े नेता व शैतान कभी अच्छी हो तो कभी बुरी सही कमाई हो जैसी न कोई छुट्टी न कोई बहाना न कुछ बने मजबूरी  सदा रहती अगली फसल की तैयारी पहले जैसी ओ रे कबीरा,   रखो  सोच किसान जैसी ! रखो सोच किसान जैसी ! आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira -- o Re Kabira 096 o--

शौक़ नहीं दोस्तों - Re Kabira 095

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-- o Re Kabira 095 o--   शौक़ नहीं दोस्तों वहाँ जाने का है मुझे शौक़ नहीं दोस्तों जहाँ ज़िस्म तो है सजे रूह नहीं दोस्तों कुछ सुनना है कुछ सुनाना भी दोस्तों जो कह न सकें गले लगाना भी दोस्तों तस्वीरों में सब ज़ख़्म छुपाते हैं दोस्तों अरसा हुआ मिले दर्द बताना है दोस्तों  ख़ुशियाँ अधूरी हैं जो बाँटी नहीं दोस्तों महफ़िलें बेगानी हैं जो तुम नहीं दोस्तों हमारी यादें हैं जो बारबार हँसाती दोस्तों मुलाक़ातें ही हैं जो क़िस्से बनाती दोस्तों वक़्त लगता थम गया था जो तब दोस्तों धुँधली यादों के पल जीना वो अब दोस्तों गलियारों में गूँजे अफ़साने हमारे दोस्तों दरवाज़ों पे भी हैं गुदे नाम तुम्हारे दोस्तों गले में हाथ डाल बेख़बर घूमना दोस्तों बेफ़िक्र टूटी चप्पल में चले आना दोस्तों गुनगुनाना धुने जो कभी भूली नहीं दोस्तों झूमें गानों पर जो फिर ले चले वहीं दोस्तों कुछ रास्ते है जहाँ बेहोशी में भी न गुमे दोस्तों कुछ गलियाँ हैं वहाँ हमारे निशाँ छुपे दोस्तों लोग कहते हैं फ़िज़ूल वक़्त गवाया दोस्तों कौन समझाए क्या कमाया है मैंने दोस्तों कल हो न हो आज तो मेरे है पास दोस्तों कोई हो न हो तुम मिलोगे है आस दोस्तों तब

एक बूँद की औकात - Re Kabira 094

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-- o Re Kabira 094 o--   एक बूँद की औकात बाग़ीचे के कोने में लगे नल से पानी टपकता रहा पूरी रात बूँद-बूँद से भर गए कच्ची सड़क के खड्डे मानो हुई बरसात टिड्डे-मक्खी-मच्छर भिनभिना लगे अंजाम देने कोई वारदात बैठी गैया को मिली राहत तपती धुप कर रही थी आघात पक्षियों का भी लगा ताँता आए फुदक डाल-डाल पात-पात पंडा जपत मंत्र तोड़ लाओ लाल फूल बगिया से बच बचात कीचड़ देख गली के बच्चों को सूझन लगी गजब खुरापात मिल गया मौका उधम मचाने का ज्यों एक ने की शुरुआत मोहल्ले का बनिया चिल्लाया सुधारोगे नहीं बिना खाये लात चिड़चिड़ा माली को बोला काहे नलके को नाही सुधरवात?  बड़बड़ाया माली कोई न सुधारे कह पीते पानी छोटी जात और बोले मुनीम हरी रहती मैदानी घास क्यों मचाते उत्पात? गुस्से में निकला बनिया झगड़ने त्यों भागे बच्चे दे उसे मात फसी धोती फिसल गिरा धपाक मिली कीचड़ की सौगात सोचे ओ रे कबीरा चूँती टोटी ने सीखा दी इतनी बड़ी बात मार ताना बोला लाला तू तो जाने ही है एक बूँद की औकात आशुतोष झुड़ेले Ashutosh Jhureley @OReKabira -- o Re Kabira 094 o--  

तुम कहते होगे - Re Kabira 093

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-- o Re Kabira 093 o-- मेरे प्रिय मित्र के पिता जी का निधन कुछ वर्षों पहले हो गया था.  ये कविता मेरे दोस्त के लिए, अंकल की याद में.... तुम कहते होगे जब भी तुम किसी परेशानी के हल खोजते होगे  जब भी कभी तुम थक-हार कर सुस्ताने बैठते होगे  जब भी तुम धुप में परछाई को पीछे मुड़ देखते होगे जब भी तुम आईने में खुद से चार बातें करते होगे  तुम कहते होगे, पापा मैं आपको ढूँढ़ता रह जाता हूँ ! जब आंटी की चाय उबल बार बार छलक जाती होगी  जब आंटी डाँटने से पहले कुछ सोच में पड़ जाती होंगी  जब आंटी दाल में नमक डालना बार बार भूल जाती होंगी  जब आंटी दीवार पर लगी तस्वीर में घंटों खो जाती होंगी  तुम कहते होगे, पापा मैं आपको ढूँढ़ता रह जाता हूँ ! जब बच्चों की आँखों अपनी तस्वीर देखते होगे  जब बच्चों की आदतों में अपने आप को पाते होगे  जब बच्चों की ज़िद के आगे न चाह के हारते होगे  जब बच्चों थोड़ी देर नज़र न आये तो घबराते होगे  तुम कहते होगे, पापा मैं आपको ढूँढ़ता रह जाता हूँ ! जब पत्नी की चिड़-चिड़ाहट में अपना बचपन देखते होगे  जब पत्नी और बच्चों की बातों में अपना लड़कपन देखते होगे  जब पत्नी के साथ तस्वीरों में अपना

मिलना ज़रूरी है - Re Kabira 092

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—o Re Kabira 092 o— मिलना ज़रूरी  है कहाँ से चले थे, कहाँ पहुँच गए जिन रास्तों पर साथ चले थे, पता नहीं कब अलग हो गए जो यार कमर से जुड़े थे, ऐसा लगता है बिछड़ गए ....  सूरत बदल गई, सीरत बदल गई, आदतें बदल गईं, शौक बदल गए, दस्तूर बदल गए, रिवाज़ बदल गए ....  तुम नहीं सुधरोगे.... तुम बिल्कुल नहीं बदले  ... सुनना ज़रूरी है, मिलना ज़रूरी है P.E.T. की रैंक, कॉलेज, ब्रांच, हॉस्टल में कमरा, viva, practical, exam, CAT, GATE , GRE , GMAT, कैंपस इंटरव्यू, की दौड़ नौकरी, तर्रक्की, ओहदा, दौलत, शोहरत की होड़ CEO, CTO, COO, CIO, Manager, Partner,  Director,  Founder, Co-founder,  Developer, Engineer, Scientist, Professor, Mentor के पीछे मेरे दोस्त तुम हो, नहीं कोई और Facebook, Insta, LinkedIN दिखाती नकली तसवीरें, है असलियत और बोला था फिर मिलेंगे किसी चौराहे, किसी मोड़ अपनी लड़ाई की कहानी जो रखी है तुमने जोड़ ... बांटना ज़रूरी है, मिलना ज़रूरी है आपने श्रीमति - श्रीमान से छुपा रखे हैं जो राज़, किस्से कहानी बताईं, नहीं बताये असल काण्ड काज कॉलेज का पोर्च, क्लासरूम, कैंटीन के पोहे, हॉस्टल के कमरे, कमरों की खिड़की के किस्